दिल के घोड़े
सर्द मौसम की रात थी... कुछ शीतल बयार सी तो कुछ ठंडी फुहार सी ये संदली हवा मुस्कुरा रही थी...
मेरे कमरे की खिड़की से आती और मुझे जगाती फिर लौट जाती अपने आशियाने में....इस बार एकाएक आई और मेरे बिस्तर के पास आकर बैठ गई...कहने लगी उठो! देखो इश्क़ आया है इस सुनहरी चाँदनी की पीठ पर बैठकर....
बुला रहा है तुम्हे अपने अधबने से,अधजले से ख़्वाबों को मुकम्मल करने......
मेरे कमरे की खिड़की से आती और मुझे जगाती फिर लौट जाती अपने आशियाने में....इस बार एकाएक आई और मेरे बिस्तर के पास आकर बैठ गई...कहने लगी उठो! देखो इश्क़ आया है इस सुनहरी चाँदनी की पीठ पर बैठकर....
बुला रहा है तुम्हे अपने अधबने से,अधजले से ख़्वाबों को मुकम्मल करने......