पुनर्विवाह
रोली, माता पिता की एक लौती संतान जो कि बहुत ऐश-ओर-आराम में अपनी ज़िन्दगी की पहली पड़ाव में ज़िन्दगी बीता दी। कोई कोना उसके दिल का होगा नहीं जो माता पिता ने सुना नहीं या भरा नहीं। बस एक जीवन साथी की तलाश थी उसे। वक़्त के साथ, यह मसला भी उन्होंने हल कर दिया। एक अच्छे अंक की नौकरी करने वाले लड़के के साथ उसकी शादी करवा दी गई।
ज़िन्दगी की ये सच्चाई उसे मंज़ूर तो थी, पर पता नहीं, कहीं पर एक कमी सी ख़लती रहती थी उसे। जानने की ख़ुद को बहुत कोशिश की, पर वो कोने में जो सवाल बवंडर की तरह उठ रहा था, उसे दबाने की कोशिश करती रही, पर हमेशा नाकाम रही। ससुराल वालों का रवैया अपनाया था उसने, पर उनके बदलते रवैयों ने उसको धीरे धीरे झंकझोर दिया था। कभी पति अपना पौरुष शक्ति का बे-वजह तानाशाही दिखाता तो कभी प्यार से पेश आकर ख़ुदको अच्छा बताता। बाकी लोग जो ढंग से पेश आते थे, आज अंजान होने लगे। दहेज को लेकर माँग, बच्चा करने को लेकर फर्माइश... इन सब में रोली जैसे पीस कर रह गई थी। शादी को बस छह महीने ही तो हुआ था। अचानक उसके नसीब ने एक नया मोड़ लिया। रात को सोते समय क्या बात हुई पता नहीं, रोली को अचानक कुछ एहसास हुआ कि सही नहीं हो रहा है, कुछ तो गडबड है। वो अपने कमरे से बाहर निकल कर बरामदे की तरफ़ रूख़ कर लिया। वहाँ नज़ारा देख कर उसके होश उड़ गए।
सामने का कमरा आरक्षित था, किसी को वहां जाने की इजाजत नहीं थी। ना तो कभी रोली ने जिद्द कर के उस कमरे की तह तक जाने की कोशिश की थी!! आज अचानक यह क्या हो रहा है? अपनी मोबाइल की बत्ती जला कर धीरे धीरे आगे बढ़ गई। दबे पांव से ही जा तो रही थी, पर उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। ऐसी कश्मकश कभी ज़िन्दगी में एहसास नहीं किया था। कुछ बेचैनी बढ़ रही थी।
" वैसे तो घर में सब सोए हुए हैं, यहां से ऐसी आवाज़ क्यूँ? "...