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part 1
एक नायाब इश्क़ -वैदेही का

"कोई उम्र प्यार की होती नहीं ,
ना होती कोई सिमा यारो ...
ये तो नायाब इश्क़ हैं जिंदगी का ...
बस पता देर से चलता यारो ...."

कहते है, प्यार की कोई उम्र नहीं होती और कितनी बार , कब , कहा, किससे प्यार हो, ये भी तय नहीं होता | ये तो बस हो जाता हैं | और होने के बाद हमारे लिए वो कीमती भी होता हैं |ये बाते मैंने , आपने बहुत बार , और बहुत लोगो से सुनी होगी |
प्यार ||| इश्क ||| मोहब्बत |||| देखो कुछ जाने पहचाने से लगे ये शब्द ,लगे ही होंगे क्यों ??
"आज सुनाते हैं तुम्हें कहानी किसी की ....
कहानी नहीं ये तो हैं पूरी ज़िंदगानी किसी की " ...

वैदेही ...नाम सुनकर लगता ही हैं ना कितना प्यारा नाम हैं, और प्यारा सा नाम तो सुन्दर सी सुशील, एक परी जैसी ,एक जवान लड़की होगी| लेकिन नहीं ऐसे कुछ नहीं था | वैदेही एक नार्मल सी लड़की थी दिखने में ख़राब तो नहीं लेकिन ज्यादा सुन्दर भी नहीं थी | उसके सामने के 2 दाँत टेढ़े से थे और थोड़े से आगे भी जिससे वो खरगोश जैसे लगती थी | उसके पापा डेंटिस्ट थे, पर उम्र कम होने से वो उसका इलाज नहीं कर सकते थे | वैदेही घर में सबसे छोटी थी और उसे एक बड़ा भाई था और माँ -पापा के साथ वो रहती थी | माँ पापा working थे | भाई कॉलेज में था और ये स्कूल में ही थी अभी ....
( क़िस्से स्कूल लाइफ के )
स्कूल की लाइफ भी बहुत अजीब होती हैं और ये जब रहती हैं, तो अच्छा नहीं लगता और जब ना रहे तब भी बुरा भी लगता हैं | उसी में
स्कूल के प्यार को लोग बचकानी हरकत ही कहते हैं | अब वैदेही जिस स्कूल में थी | वहा भी सबकुछ वैसे ही था जैसे सारे स्कूलों में होता हैं | वो रोज सुबह जाती और दोपहर तक आ जाती थी | 10th क्लास तक पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं दिखा और दिखे भी कैसे अपने लुक को लेकर वो हमेशा ही किसी से बात करने को लेकर पीछे हट जाती ओर तो ओर वो पढ़ने में भी ठीक ठाक ही थी | 10th के बाद फिर 11th में आये और एक दिन ऐसा कुछ हुआ जिससे उसकी लाइफ में कुछ बदलाव आ गए |
एक लड़का जिसे वैदेही रोज किसी न किसी बहाने देखती थी ,लेकिन किसी भनक तक नहीं थी ,और ना ही उस लड़के को पता था , की वैदेही उसे देखते रहती हैं | वो लड़का कोई ओर नहीं था ,वो वैदेही का ही क्लासमेट था और इतना ही नहीं पूरे क्लास का topper भी था , "अनिल || "
अनिल ने उसे घर जाते समय रोका और कहा "वैदेही , मैं अनिल तुम्हारे ही क्लास में हूँ और तुम को पता नहीं होगा मैंने बहुत बार तुम्हारे ...| वैदेही ...ओह ,अरे यार सुनो तो ...वैदेही | " अनिल बात कर ही रहा था ,लेकिन पता नहीं क्यों वैदेही हड़बड़ाते हुये चली गयी, कुछ कहा भी नहीं और सुना भी नहीं ,उसके पास ना ही आँख उठाकर देखा |
और यहाँ अनिल मन में सोचता ही रह गया की , "आखिरकार वैदेही ने ,मुझसे बात क्यों नहीं की , कही वहा कोई टीचर तो नहीं थे ,या फिर उसको बुरा लगा हो , कोई नहीं कल बात कर लेंगे |"
वहासे वैदेही हड़बड़ाकर तो निकली थी, पर बिना कही रुके वो घर पहुंच गयी थी | वैदेही के भैय्या वेदांत उसे प्यार से " वैदु"...