...

6 views

असमंजस में फसी लड़की
यू जाने क्यों खुद से नाराज हो जाती हूं
वक्त वे वक्त यू बेबाक हो जाती हू
खुद से ही हर पल जंग का ऐलान करती हूं
अपने अन्दर हो रहे अंतर्द्वंद को में शांति करती हूं
खुद से सवाल खुद से ही जबाव करती हूं
आखिरकार थक हार कर सो जाती हूं
कभी _ कभी ये सारा जहां बेरंग सा लगता है
मैं यहां क्यों हूं किसलिए आई हूं
अपनी जिंदगी का हर लम्हा ओरो के लिए जीती आई हूं
जिम्मेदारियों को मरते दम तक निभाना है
बाकी सब तो फसाना है
अब मुझसे ये समाज के ताने बाने सहे नही जाते
जिस समाज में कभी पली बड़ी थी
आज उसी समाज के लोग मुझे नहीं भाते
कभी . कभी लगता है में कुछ कर नही सकती
अकेले यू राहो में चल नही सकती
खुद को आवाज लगाकर उठ खड़ी हो जाती हूं
जिन राहो से डरती थी उन राहो पर चलके दिखाती हूं।।