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एक मुलाकात (भाग-1)
विपिन ने अभी अभी अपनी पढ़ाई खत्म करी थी। कई जगह उसने अध्यापक पद के लिए अपना बायोडाटा यानी resume दिया हुआ था। एक जगह उसको प्राइवेट नौकरी भी मिल रही थी, पर वो जगह दूसरे शहर में थी। नौकरी, आमदनी, जगह, सब अच्छा था वहांँ, घर वालों से बात करने के बाद विपिन ने उस नौकरी के लिए हाँ कर दी। वहांँ जाकर स्कूल वालों ने उसके रहने का इंतजाम स्कूल के हॉस्टल के एक रूम में कर दिया।

एक महीने मेे विपिन उस स्कूल के सभी अध्यापक एवम् अध्यापिकाओं के साथ अच्छे से घुल मिल गया। स्कूल काफ़ी बड़ा था, और वहांँ लाईब्रेरी का कमरा तो सबसे बड़ा था। उसे पढ़ने का बहुत शौक था इसलिए वो समय मिलते ही लाईब्रेरी में पढ़ने चला जाता था। लाइब्रेरी रोज शाम को 7 बजे ही बंद हो जाती थी और सुबह 7 बजे के बाद ही खुलती थी। स्कूल के किसी भी व्यक्ति को इसका कारण नहीं पता था और ना ही कभी किसी ने जानने की कोशिश ही की थी।

लाइब्रेरी काफी बड़ी थी, उसमे रात को कोई भी खो जाएगा और डर भी जाएगा, शायद इसीलिए बन्द कर देते हैं, ये कहकर विपिन ने भी ख़ुदको समझा लिया।

एक दिन की बात है, जो अध्यापक लाइब्रेरी की देख रेख किया करते थे, वे बीमार पड़ गए तो लाइब्रेरी की सारी जिम्मेदारी विपिन को ही दे दी गई। कारण भी सरल सा था कि उसको किताबों से सबसे अधिक लगाव था।

विपिन भी खुश था क्योंकि अब वो जब चाहे तब लाइब्रेरी में आ जा सकता था, आधी रात को भी।
कुछ दिनों बाद उसका काम देखकर उसको लाइब्रेरी की देख रख का काम परमानेंट ही दे दिया गया।

एक रात विपिन को नींद नहीं आ रही थी तो वो चुपके से लाइब्रेरी में चले गया, वहांँ एक बैंच पर बैठ वो एक किताब पढ़ रहा था, कि तभी उसको महसूस हुआ कि वो वहांँ अकेला नहीं है।
© pooja gaur