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NIKKU chapter no.17
छठ मैं जब अपने गाँव गया लेकिन मुझे हर वक़्त अपने दोस्तो की ही याद आ रही थी ,निक्कू की तो ओर ज्यादा पर क्या कर सकते थे

याद तो बहोत आ रही निक्कू
तुम याद भी आती हो तो हम चुप रहते है
की कही आंखों को खभर हो गयी तो बेवजह बरस पड़ेंगी।

दिन गुज़र रहे थे ,एक दिन क्या हो गया ये व्हाट्सएप्प पे मेसेज मैं फॉरवर्ड कर रहा था और न जाने गलती से वो मेरे कॉलेज के ग्रुप मैं चला गया जहाँ बच्चे तो थे ही पर शिक्षक भी थे मैने ध्यान नही दिया और अचानक मैसेज आने लगा वो तो अच्छा हुआ की नीतेश का कॉल आ गया मुझे, ओर मैं जल्दी से डिलीट कर दिया मैं पूरा डर गया था न जाने अब क्या होगा,मैंने नीतेश को बताया बोला भाई तुम लोग बचा लो मुझे पता नही अब क्या होगा।।बोला अरे कुछ नही होगा
मैंने बोला ठीक है तुम लोग ही मैनेज करो,फिर कुछ देर बाद ही रूपेश का कॉल आया फिर उससे बात की यही सब के बाड़े में उसी समय से मेरी ओर रूपेश की जान पहचान अच्छी हो गयी थी,वेसे भी वो बिहारी लोग को बहोत प्यार...