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बिगुल (लघुकथा )
लघुकथा - "लड़कियों को शिक्षा का अधिकार"


एक गाँव में रामचरण का परिवार रहता था उसकी एक लड़की (प्रत्युषा )और एक लड़का (अभिरुप ) था.लेकिन वो दलित जाती का था, तो समाज़ में लड़कियों को केवल चिट्ठी लिखने तक पढ़ाया जाता और घर के काम काज पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था, 14वर्ष में शादी कर के घर संसार संभालने की रीत बना कर रखा गया था लड़की ज्यादा उच्च स्तर पर पढ़ने की अनुमति नहीं थी. उन्हें गंदी निग़ाहों से देखा जाता था विधयालय में जाओ तो उन्हें नीचे सब बच्चो से अलग बिठाया जाता था तो प्रत्युषा को कहीं ना कहीं ये बात ख़टकती थी क्या भगवान् ने हमें अलग मिट्टी से बनाया की इतनी छुआ छूत की भावना हमसे रखी जाती क्या हम सब इंसान से अलग है की हमारे संग ऐसा व्यवहार किया जाता मैं पढ़ कर गाँव की रिवाज में परिवर्तन कर दूगी माँ. लड़कियों को भी तो उतना ही अधिकार है पढ़ने के लिए लड़कों को है.तो लोग क्यों हमें आगे बढ़ने से रोकते है. लेकिन रामचरण अपनी बेटी से अताह प्रेम करता था हमेशा उसके साथ ढाल बन कर रहता है, उसे पढ़ने का बहुत शौक़ था बचपन से ही वही बेटा आवारगर्दी करता पढ़ने में उसका मन नहीं लगता था.विद्यालय तो जाता लेकिन दोस्तों के संग घूमता रहता.

प्रत्युषा बड़ी हो गई सब गाँव में कहने लगे की एक अच्छा वर ढूढ़ बेटी की शादी कर दो पढ़ लिख कर क्या करेगा चौका ही तो करना है क़लम थोडी चलाना है पिता उनकी बातों को सुन अनदेखा करता और बेटी के सपनों की उड़ान के लिए उसे विश्वविधालय में दाखिला कर देता वहाँ से प्रत्युषा वकालत की पढ़ाई कर एक हाईकोर्ट की जज बन जाती.. तो पिता को बहुत ख़ुशी होती है की इतने साज़िश दलीलों के बावजूद पिता एवं बेटी ने हिम्मत नहीं हारी पढाई के प्रति अपनी जंग को जारी रखा. गाँव को भी गर्व महसूस होता.. सबके मुँह पर तमाचा था जो सोचते थे की बेटियाँ केवल शादी कर घर संसार एवं बच्चा पैदा करने के लिए होती है.

तब से गाँव में सोच विचार ही बेटियों के लिए बदल गई.. तब से गांव के सभी लोगों की आंखें खुल गई और सभी ने अपने बेटियों का दाखिला प्रत्यूषा के विद्यालय में करवाने लगे. जहां पर शहर से शिक्षक आते थे पढ़ाने के लिए.यहाँ से प्रत्युषा ने अकेले ही बेटियों के शिक्षा के अधिकार के लिए बिगुल बजाया और सफ़ल भी किया. गांव के हर लड़कियों के लिए एक स्कूल का निर्माण करवाया.. जिसमें सबको समान अधिकार से पढ़ाया लिखाया जाता था..ना कोई छोटा ना कोई बड़ा सब एक समान थे.

गांव को एक सुंदर संदेश भी दिया है कि लड़कियां बोझ नहीं है लड़कियां पढ़ लिख कर आगे पढ़कर हो समाज का नींव है और समाज को सुधार सकती है.

Dolly Prasad ✒



© Paswan@girl