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दुनियादारी
कभी कभी म सोचता हूँ कि जिसे देखो दुनियादारी का हवाला देकर कुछ भी करता है। पूछो, भाई ऐसा क्यों किया ? जवाब मिलेगा, अरे भाई, सब दुनियादारी का खेल है। क्या करें, करना पड़ता है ।
पूछो, यार क्या बात है आजकल मिलने भी नही आता?
जवाब मिलेगा, अरे यार बस, दुनियादारी में फंसे हैं।
लगता है दुनियादारी भी एक ऐसा पिंजरा है, जिसे अपनी सहूलियत के अनुसार खोलो और बन्द करो।
अगर आज के संदर्भ में कहूँ तो, जब मन करे lockdown करो जब मन करे खोल दो।
आजकल तो lockdown है कोई इतना व्यस्त तो नही हो सकता कि दोस्तो को एक फ़ोन ही ना कर सकें, पर ऐसा नही है मेरे दोस्त, आजकल भी दुनियादारी आड़े आती है । अब भी किसी से पूछो तो जवाब वही मिलेगा, भाई बस लगे हैं दुनियादारी में।
पर म ये तो ये कहना चाहता हूँ कि इसी दुनियादारी में थोड़ा सा वक्त अपनो के लिये भी रख लो, खासकर उन अपनो के लिये जो जन्म से अपने नही थे, पर हमने उन्हें अपना बनाया (दोस्त/मित्र/यार) । पता नही कब इतने दूर चले जाओ की लौटना तो दूर मुड़कर भी ना देख पाओ, और जिसे आप कुछ वक्त के लिये भूले थे, उसने तुम्हे छोड़ ही दिया हो।
इसलिये उसी दुनियादारी के साथ इसे भी थोड़ा जमा कर लो। यही तो वो पूंजी है जिसे जमा करोगे तो तुम्हारी ही रहेगी कोई छीन नही सकता और ना ही इसका बंटवारा कर सकता है।

✍️ SK