...

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कोई बात नहीं!
आज शाम को बैठ के आप किसी की बुराइयाँ कर रहे हो, बेवजह या किसी वजह से आलोचना कर रहे हो।
मज़ा आया होगा?
अलगी सुबह आप उठे और पता चला कि वो इंसान अब नहीं रहा।
कैसा मेहसूस होगा आपको?

अलोचना करना, बुराई करना, ये होता है। पर इस हद तक करना की कल को उसे कुछ हो जाए तो आपको दुख हो, guilt हो अपनी बातों का, वो ठीक नहीं, आपके अपने लिए ठीक नहीं।
आप ऎसी सोच बना सकते हो कि 'कोई बात नहीं, सब सही नहीं होते, सब हर जगह सही नहीं होते, मैं खुद गलतियाँ करता/करती हूँ, तो क्या हुआ आज इससे हो गयी, या इसका स्वभाव ही ऐसा है'।
ज़हीर है किसी criminal के लिए ये बातें लागू नहीं होती ( मानवता को ध्यान में रखते हुए), पर एक आम इंसान के लिए तो ऎसी सोच रखी जा सकती है। मुश्किल काम है, पर इसका फल बहुत मीठा है। दूसरों के लिए ना सही पर आपकी अंतर आत्मा और शांति के लिए तो है ही।
और आज के समय में इस आन्तरिक शांति से बड़ा धन कुछ नहीं है।
© bani745