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sweekriti....
कभी खुद से खुद की गलतियां स्वीकार की है...
मैं हर रोज करती हूं...
हर उस पल में करती हूँ....जहां मुझे पता होता है की गलत हम खुद है लेकिन सजा किसी और को दे रहे है वो भी सिर्फ इसलिए क्युकी वो हमारे लिए नहीं अपने लिए कुछ करना चाह रहा है...
हम कभी कभी किसी पर इतना हावी हो जाते है की हमे उसके मन की परवाह ही नहीं होती...
लेकिन हम ये भूल जाते है की ऐसा रिश्ता कमजोर होता है.....
रिश्ता मजबूत वो है जिसमें हम झुके, गलत है तो माने और थोड़ा खुद समझे थोड़ा उसे समझने दे...
गलती मानना अपमान नहीं होता.है...और किसी के खुशी के लिए कुछ करना सम्मान नहीं प्यार होता है.......तो कुछ शब्द अगर गुस्से के आगोश. में निकल भी गए तो गुस्rसा थोड़ा कम करके सुधार करिए......थोड़ा अगले को भी समझिए 🙃