"क्या पाया खोकर खुद को,,
चांद को पाने के चक्कर में
प्रिया खुद को खो बैठी
जिनसे मेरी मर्यादा थी
भूल उसी की कर बैठी।।
चाँद बेचारा बड़ा बेशरम
आदत से मजबूर
पता नहीं कितनों का खोया
बेस कीमती नूर।।
अकल हुई तो पता चला
कि सारा रंग हुआ बेरंग
जिन पर नाज़ किया करती थी
सूख गया वो सारा अंग।।
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प्रिया खुद को खो बैठी
जिनसे मेरी मर्यादा थी
भूल उसी की कर बैठी।।
चाँद बेचारा बड़ा बेशरम
आदत से मजबूर
पता नहीं कितनों का खोया
बेस कीमती नूर।।
अकल हुई तो पता चला
कि सारा रंग हुआ बेरंग
जिन पर नाज़ किया करती थी
सूख गया वो सारा अंग।।
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