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समाज की नजर
इस 2021 में ये शब्द सुनकर दिमाग में एक ही ख़्याल आता है, "निर्लज"।
बहुत अजीब लग रहा होगा क्यों ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहा हूं, अगर शायद कीमत होती इस शब्द की तो मैं इसे कौड़ियों के भाव न खरीदता और न सलाह देता।
क्योंकि यहां तो इंसान की कीमत नहीं समझी जाती वो क्या खनिज, संसाधन, धन, संपत्ति और प्यार की कद्र करेंगे। ये समाज जो दिखता है कि हां हम सब एक है, एक साथ काम करते है, ये वहीं इंसान है जिन्हें अपनी जिंदगी ये सब नसीब ही नहीं हुआ.. जब मिला नहीं तो इन्होंने एक गुट बनाया और समाज का नाम दे दिया और मौके तलाशने का काम शुरू कर लिया। और गलती से इन्हें इन चारों में कुछ मिल गया तो ये खुद को आका समझने लगते है और बिना सोचे वो काम करते है जिससे एक इंसान इतना मजबूर हो जाता है कि वो या तो अपनों से उसका बदला लेता है या उनको इस बात की सजा देता है और ये चक्र सदियों से चल रहा है और इसमें गरीब मरता है, मजदूर मरता है और अक्सर घुट कर प्यार करने वाला मर जाता है। गरीब की मृत्यु होती है तो उसका परिवार भुगतता है और ऊपर वाले का साथ मिला गया तो अपना जीवन यापन भी कर लेता है, कुछ ऐसा मजदूर के हिस्से में भी आता है मेहनत और पसीना उसका पहले से उसका भगवान होता है और कुछ ऊपर वाले के साथ वो संभल जाता है। बस एक प्यार करने वाले सूली चढ़ जाते है इस समाज की बेड़ियों में क्यूंकि वो एक ऐसा गुनाह करते है उनकी नजर में जो माफी लायक नहीं होता..
लेकिन सबसे बड़ी बात दो प्यार करने वाले अगर अलग हो गए तो ये खुद को समाज कहने वाले उनको इतने ताने मारते है कि या तो वो बेचारे खुद को मार देते है और अगर वो खुद को मार लेते है तो उनके परिवार के लिए नासूर बन जाते है ये खुद को समाज कहने वाले लोग। हां इसमें भी है कुछ अगर ये अलग हो गए और जिन्दा रह गए तो फिर तो ये और बड़ा गुनाह हो गया क्युकी ये लोग अब दो और घरों को बर्बाद कर देंगे इनकी नजर में.. हां ये बात हो भी क्यूं ना आखिर वो बेचारे इनकी वजह से अपना घर नहीं बसा सके, और कहीं न कहीं इन सबके लिए हम सभी जिम्मेदार है..
एक अपने की मौत समझाने के लिए काफी है कि समाज कितना निर्लज है..

© अदीत