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रिश्तों में खटास (भाग ३)
समय बीतने लगा सब अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए। पर पाण्डेय जी ने समाज सेवा का चोला धारण कर लिया। शर्मा जी के बेटे के लिए नौकरी खोजनी शुरु कर दी।एक दो जगह उसे नौकरी पर लगवा भी दिया, पर वह ठहरा नालायक हर नौकरी को कुछ समय बाद ही गुड़ बाय कह देता। पाण्डेय जी ने थक हार कर शर्मा जी को समझाया बहू को बी.ए.ड. करवा कर कहीं टीचर लगवा दे। उनके घर की हालत किसी से छिपी नहीं थी। छोटे बेटे का दूसरे शहर में तबादला हो गया था। वह अपनी बीवी, बच्चों के साथ जा चुका था। बड़ा बेटा दो बेटों का बाप बन गया था पर अब सुबह शाम नशे में धुत्त रहता और सुशीला पर ज़ुल्म ढाता। शर्मा जी और मिसेज़ शर्मा रिटायर्ड हो गए थे। उन्हें जो पेंशन मिलती उसका आधा हिस्सा बेटे की शराब में उड़ जाता, पर वो पुत्र मोह में कुछ न कहते। सुशीला ने बी.ए.ड. कर लिया और वह सरकारी स्कूल में टीचर भी नियुक्त हो गई। लेकिन घर का माहौल नहीं बदला। सुशीला के बच्चे बड़े हो रहे थे, वह उन्हें अच्छे स्कूल में तालीम दिलाना चाहती थी । पर पति की आदत की वजह से घर में हमेशा पैसों की तंगी रहती थी ।वक़्त के साथ सुशीला में भी बदलाव आए वह माँ बन गई थी । उसने घर में ऐलान कर दिया कि वह अपने पति को शराब के लिए पैसे नहीं देंगी । उसकी इस हिमाक़त पर सब ख़फ़ा हो गए । वह अपनी बात से टस से मस न हुई ,अब उसे अपने बच्चों का भविष्य सवारना था। उस पर ज़ुल्म बढ़ते गए । मोहल्ले वालों ने शर्मा जी को बहुत समझाया कि बेटा ग़लत है, उसे रोके और बहू का साथ दे।शर्मा जी तो बेटे के साथ खड़े नज़र आए । सुशीला ने अपने पति से तलाक़ लेने का फ़ैसला कर लिया। इसमें पूरे मोहल्ले ने उसकी मद्द की।