श्रद्धा के फूल 🌺🌺🌺
आज सुबह जब सुजीत उठा ,देखा उसके पौधे में एक भी फूल नहीं, सुजीत निराश हो गया और चला गया।
कुछ दिन पहले......
सुजीत एक गांव का रहने वाला ,हमेशा भक्ति में मग्न रहने वाला सीधा साधा लड़का हर सुबह बहुत प्रेम से अपने पौधो को पानी देता हैं ,इस आस में की उसमे फूल हो और वह अपने प्रभु जगन्नाथ को वो फूल अर्पण करे।
हर सुबह की तरह आज सुबह भी वह पानी देने गया परंतु एक भी फूल ना पाकर थोड़ा निराश हो गया लेकिन आस ना छोड़कर वो अपने काम पर चला गया।
तभी गांव में रथ यात्रा की सुविधाएं की जा रही थी,सुजीत की इच्छा थी कि इस बार की यात्रा के लिए वे फूल दे इसलिए वे मंदिर के पुजारियों के पास अपनी बात रखने गया।
परंतु वहां पुजारियों ने सुजीत की बातों को ना सुनकर मना कर दिया और बोला कि हमनें सब प्रबंध कर लिया है।
सुजीत निराश होकर जाने लगा तभी एक पंडित जी मिले उन्होंने उसे टोकते हुए पूछा क्या हुआ तुम्हे तुम इतने उदास क्यों हो मंदिर आकर।
सुजीत ने सब बताया कि उसकी इच्छा केसे पूरी नही हो पा रही। तब वह पंडित जी हस्ते हुए बोले बस इतनी सी बात तुम जाओ फूलो का प्रबंध करो इस बार तुम्हारे फूलों से ही प्रभु को सजाया जाएगा।
सुजीत बहुत प्रसन्न हुआ।और रास्ते भर सोच रहा था कि फुल जल्दी आए और वह सब प्रभु के पास लेकर जाए।
अगले दिन जब सुबह सुजीत जाकर देखता है फूल देखकर खुश हो जाता है एवम रथ यात्रा की प्रतीक्षा करता है।
रथ यात्रा का पूर्व दिन -
जब सुजीत उठके बाहर फूल लेने गया उसकी आंखे भर आई, क्योंकि पौधो में एक भी फूल नही आया था।वो जाके प्रभु के पास जाकर रोने लगा बोला प्रभु बहुत कष्ट से मुझे ये सुजोग मिला है ,परंतु एक भी फुल nhi मुझसे कोई भूल हुई क्या प्रभु, ऐसा कहकर सुजीत वहीं सो गया।
रथ यात्रा का दिन-
सुबह 4 बजे जब सुजीत उठकर फूल देखने गया जो उसने देखा उसकी आंखों पे उसका भरोसा ना हुआ।
इतने फुल उस पौधे में कि पौधा ही छुप गया।
सुजीत खुश होकर फूल लेने गया उसके हाथ थक गए परंतु पौधो से फूल नहीं खत्म हुए।
बहुत ही श्रद्धा से सुजीत ने फूल अपने प्रभु को अर्पण किए।
श्री महाप्रभु जगन्नाथ जी की ही महिमा (भाग-१)।
© psycho
कुछ दिन पहले......
सुजीत एक गांव का रहने वाला ,हमेशा भक्ति में मग्न रहने वाला सीधा साधा लड़का हर सुबह बहुत प्रेम से अपने पौधो को पानी देता हैं ,इस आस में की उसमे फूल हो और वह अपने प्रभु जगन्नाथ को वो फूल अर्पण करे।
हर सुबह की तरह आज सुबह भी वह पानी देने गया परंतु एक भी फूल ना पाकर थोड़ा निराश हो गया लेकिन आस ना छोड़कर वो अपने काम पर चला गया।
तभी गांव में रथ यात्रा की सुविधाएं की जा रही थी,सुजीत की इच्छा थी कि इस बार की यात्रा के लिए वे फूल दे इसलिए वे मंदिर के पुजारियों के पास अपनी बात रखने गया।
परंतु वहां पुजारियों ने सुजीत की बातों को ना सुनकर मना कर दिया और बोला कि हमनें सब प्रबंध कर लिया है।
सुजीत निराश होकर जाने लगा तभी एक पंडित जी मिले उन्होंने उसे टोकते हुए पूछा क्या हुआ तुम्हे तुम इतने उदास क्यों हो मंदिर आकर।
सुजीत ने सब बताया कि उसकी इच्छा केसे पूरी नही हो पा रही। तब वह पंडित जी हस्ते हुए बोले बस इतनी सी बात तुम जाओ फूलो का प्रबंध करो इस बार तुम्हारे फूलों से ही प्रभु को सजाया जाएगा।
सुजीत बहुत प्रसन्न हुआ।और रास्ते भर सोच रहा था कि फुल जल्दी आए और वह सब प्रभु के पास लेकर जाए।
अगले दिन जब सुबह सुजीत जाकर देखता है फूल देखकर खुश हो जाता है एवम रथ यात्रा की प्रतीक्षा करता है।
रथ यात्रा का पूर्व दिन -
जब सुजीत उठके बाहर फूल लेने गया उसकी आंखे भर आई, क्योंकि पौधो में एक भी फूल नही आया था।वो जाके प्रभु के पास जाकर रोने लगा बोला प्रभु बहुत कष्ट से मुझे ये सुजोग मिला है ,परंतु एक भी फुल nhi मुझसे कोई भूल हुई क्या प्रभु, ऐसा कहकर सुजीत वहीं सो गया।
रथ यात्रा का दिन-
सुबह 4 बजे जब सुजीत उठकर फूल देखने गया जो उसने देखा उसकी आंखों पे उसका भरोसा ना हुआ।
इतने फुल उस पौधे में कि पौधा ही छुप गया।
सुजीत खुश होकर फूल लेने गया उसके हाथ थक गए परंतु पौधो से फूल नहीं खत्म हुए।
बहुत ही श्रद्धा से सुजीत ने फूल अपने प्रभु को अर्पण किए।
श्री महाप्रभु जगन्नाथ जी की ही महिमा (भाग-१)।
© psycho