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पंडितजी
सन् 1980 में हमारे शहर में कुछ अलग सा वातावरण था। तेलंगाना, मराठा, कन्नड, मारवाड़ी हर भाषा के लोग यहाँ रहते थे। सभी अपनी भाषा के साथ-साथ दक्कनी हिंदी बोलते थे।
पडोस में एक ब्राह्मण परिवार था।बडा गरीब था। पिता पास के मंदिर में पूजा करते थे, जो दक्षिणा मिलती उससे घर चलता था। एक बेटा था जो ग्रेजुएट था पर बेरोजगार।
उस समय शुरूआत हुई थी रिजर्वेशन्स की। बी.सी,एससी,एसटी, इन सबको नौकरी मिल सकती थी। पर ब्राह्मण को नही मिल सकती थी। दो बेटियाँ थीं। एक
बच्चों को ट्यूशन पढातीं थीं...