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औरत:-, story of women
"औरत"
इसका महत्व तो सभी जानते हैं।ऐसा तो कोई भी नहीं जो औरत अर्थात माँ की भूमिका से वंचित है।
सृष्टि की रचना औरत से है और विनाश भी।
औरत दुर्गा है तो काली भी है।देवी के अनेक रूपों के साथ स्त्री भी खुद में अनेक रूपों को समाए हुए होती है।
एक रूप में न जाने कितने किरदार लिए होती है।एक औरत पहले बेटी ,बहु ,माँ उसके बाद न जाने कितने रिश्ते के साथ खुद को सँजोये हुए रहती है।
तो आइए आज का विषय "अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस"के बारे में कुछ लिखना चाहती हूँ।आशा करती हूं कि आप सभी को पसन्द आये।
सच तो ये होता है कि औरत का कोई खास दिन नहीं होता।हर दिन औरत से शुरू और उसी से ख़त्म होता है।
जिस दिन घर की महिला बीमार हो जाये,,तो घर भी बीमार से लगता है।
स्त्री से घर चहल पहल, रौनक, खुशियां आदि बनी रहती हैं।
महिला चाहे कामकाजी हो या घरेलू सारे अपने किरदार में परिपक्व होती हैं।
कभी -कभी तो ऐसा भी हो जाता है हम महिलाओं को ये ख़ास दिन भी याद नहीं रहता,,कैसे याद हो ?
रात में सोने से पहले सुबह क्या खाना बनाना है ,हम तो ये याद कर के सोते हैं।
तो अपना ख़ास दिन कहाँ हुआ।
हर दिन कुछ न कुछ ख़ास बनाना और घर, बच्चों में ही उलझे रहना ।यही सबसे ख़ास लगता है।
सारा दिन काम करने के बाद कुछ फुरसत के लम्हेभी आते हैं।जब हम महिलायें फोन या आसपास लोगों से बात कर के मन बहलाया करती हैं।ये सिलसिला तो यूँ ही चलता रहता है।जिस दिन हमें कोई इज़्ज़त देता है,, वो दिन भी ख़ास होता है।जब ससुराल या मायके में कोई प्यार दे,वो दिन खास होता है।हर एक रूप में रिश्तों में प्यार और इज़्ज़त मिल जाये ।मेरे हिसाब से एक औरत के लिए ये सबसे खास होता है।
हर औरत ख़ास होती है,, और हर दिन ख़ास बनाने वाली औरत को महिला दिवस की धरसरी शुभकामनाएं💐💐💐💐
© ƧӇƖƊƊƛƬ