...

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काश तुम्हें कोई समझा पाता...
कोई समझाए उन्हे प्यार से
की प्यार करते कैसे है,
ज़रा उन्हे भी तो पता चले
रात - दिन बिन सोये
निकलते कैसे है...

कोई समझाए उन्हे
उन्ही से दूर रह कर
की रहते कैसे है,
ज़रा उन्हे भी तो पता चले
दूरियो मे भी फ़ासले
मिटते कैसे है...

कोई समझाए उन्हे मुस्कुरा कर
की देखकर उन्हे दुसरो के साथ
हम जलते कैसे है,
ज़रा उन्हे भी तो पता चले
बिना दम निकले
हम मरते कैसे है...

कोई समझाए उन्हे डाँट कर
की डाँटते कैसे है,
ज़रा उन्हे भी तो पता चले
डाँटने और समझाने मे
फ़र्क कैसे है...

कोई समझाए उन्हे हँस कर
की गम मे भी हँसते कैसे है,
ज़रा उन्हे भी तो पता चले
कभी-कभी हम खुश होने क ढोंग
रचते कैसे है...

कोई समझाए उन्हे चुप रह कर्
की अपनो की खामोशी सुनते कैसे है,
ज़रा उन्हे भी तो पता चले
रिश्तो मे एक​-दूसरे को समझते कैसे है...

आखिर कोई समझाए उन्हे.....


© Akash dey