...

14 views

नन्दिनी तेरी कहानी
आज के आपाधापी और व्यस्तता के दौर में सबसे कीमती चीज़ है
वक़्त

जिसकी जरूरत इंसान को तोड़ भी देती है

तो चलिए कहानी की शुरआत करते हैं

दोस्तो कहानी शुरू करने से पहले आपको एक बात बता दूं

लोग मुझे अकसर कहते है कि आप शादीशुदा नहीं है फिर भी स्त्री के जीवन को इतनी सुंदर तरीक़े से करूणारूपी शब्दों में कैसे परिभाषित कर लेते हैं

तो दोस्तों इसमें मेरे अविवाहित होने से
यह तय नहीं होता कि स्त्री को समझने के लिए विवाह का होना आवश्यक है

स्त्री के प्रति सम्मान और ममता का नज़रिया रखेंगे तो आप स्त्री को सहजता से समझ सकते हैं।

तो आइए कहानी की शुरुआत करते हैं

आज फिर स्कूल की घंटी बजी ।
नंदनी रोज की तरह बालों में दो चोटी बनाकर स्कूल के लिए सहेलियों के साथ निकली

ठंड का मौसम है धूप बड़ी सुहावनी लग रही है

दौर 1999 का है जब मोबाइल और social media का चलन नहीं था

खेल भी खो खो और कब्बड्डी ही होती थी जो शारीरिक और मानसिक योग्यता का प्रदर्शन बड़ी सुगमतापूर्वक करते थे

गांव का परिवेश था तो लहजे में लाज और शर्म का विशेष मिश्रण होता था

सरकारी स्कूलों में शिक्षा अनिवार्य थी
उस वक़्त शिक्षक लड़कियों और लड़कों में छड़ी का भरपूर उपयोग करते थे

दंड देने में कोई आरक्षण नहीं था
और माता पिता भी इसका समर्थन करते थे

नंदिनी जब स्कूल से घर वापस जाती तो
माँ के पास जाकर बैठ जाती
फिर मां उसे खाना खिलाती अपने हाथों से
नन्दिनी भी खाना खाकर अपने आँगन में खेलती रहती

फिर शाम होते ही माँ के साथ पूजा करती
फिर पढ़ाई करने बैठ जाती

रात्रिभोज करने के बाद 7बजे सो जाती
गांव में उस वक़्त और कही कही आज भी जल्द सो जाया करते हैं


सुबह उठकर फिर तैयार होकर स्कूल जाना
अपनी दिनचर्या को पूरा करती थी।


वक़्त बितते गए
वक़्त के साथ वो भी बड़ी हुई
स्कूल की शिक्षा पूरी कर वो कॉलेज में पहुंची जब देश बदलाव से गुजर रहा था
अर्थात मोबाइल फ़ोन का चलन जारी हो गया था ।

मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी

जो जरूरत की चीज़ें ही अपने पास रखती थी जो शिक्षा के लिए अनिवार्य हो

शर्मीली थी तो उसकी ख्वाहिश कम थी।

माँ की लाडली थी लेकिन माँ की सारी बाते मानती थी

कोई नखरा नही करती थी अपने परिवार की हालात से वाकिफ थी

तो वो परिपक्व हो गयी थी ।

उसकी जिंदगी तो वैसे संघर्ष भरा ही रहा लेकिन माँ ने उसका भरपूर साथ दिया

जो उसके चेहरे की मुस्कान थी


उम्र के पड़ाव में शादी भी एक परिवार का अहम हिस्सा है

नन्दिनी बहुत खूबसूरत थी और शिक्षित भी
और सरल स्वभाव की

रिश्ते आने लगे शादी के
एक से बढ़कर एक

लेकिन नन्दिनी के ख्वाबों में कोई और ही था
वो किसी और लड़के को पसंद करती थी
वो शादी भी उसी लड़के से करना चाहती थी

जब घर परिवार वालो को बात पता चली तो उन्होंने लड़के के बारे में नंदिनी से पूछा

नंदिनी ने बताया कि वो लड़का मेरे साथ पढ़ता था

आज एक इंजीनियर है और हमारे जाति समाज का है

नन्दिनी की पसंद को घर वालों ने भी स्वीकार किया ।

और नन्दिनी की शादी उसी के पसंद के लड़के के साथ कर दिए

नन्दिनी खुश थी कि मनपसंद लड़के से शादी हो गयी

शादी के कुछ सालों के बाद उसको नया अनुभव हुआ जो उसे परेशान करने लगा

प्यार तो मिलता था पति से लेकिन वक़्त नहीं मिल पाता था

दोनों के बीच कभी कभी नोकझोंक होने लगी

3 साल हो गई शादी को लेकिन नन्दिनी को उनका पति समझ नहीं पाया

नन्दिनी समझदार है रिश्ते को संभाल रही है

लेकिन अंदर से टूट चुकी है

पति से बात भी करती है ,तो पति का जवाब रूखा ही मिलता है

फिर भी मुस्कुराती है ताकि लोगों को उसका दर्द पता न चले

इस प्रयास में की आज नहीं तो कल मेरे पति मुझे जरूर समझेंगे

एक 2 साल का बच्चा है जो बहुत सुंदर है
बस उसी के साथ अपनी दिनचर्या निकालती है मुस्कुराकर

एक दिन नन्दिनी ने पति से कहा कि मेरी पसंद की शादी

हम दोनों शादी से पहले एक दूसरे से प्यार करते थे

इतना समय हमने साथ बिताया तो आप मुझे इस तरह से क्यों अनदेखा करते हैं

आपके भरोसे मैंने परिवार वालों से हमारी शादी की बात की आप से बेहतर मुझे कोई और दूसरा लड़का समझेगा नहीं
भरोसा था आप पर की आप मुझे अपने बराबर बिठा कर बराबर का दर्जा देंगें

लेकिन अब मैं सिर्फ शारीरिक भोग से ज्यादा कुछ नहीं आपके लिए

मुझे आप फ़ालतू बात मत करो करके हमेशा मेरी बात को नजरअंदाज कर देते हैं

लेकिन मैं अपने भीतर ही इस दर्द को घुटन को दबा कर रखती हूँ

आपसे न कहूँ तो किससे कहूँ मैं अपनी बातें

आप पति बनकर ही क्यों सोंचते हैं कभी मेरी माँ बनकर भी अपनी नन्दिनी को देखिए

मुझे उनकी जरूरत है जो मेरे साथ नहीं
क्या आपसे माँ की ममता मांगना अपराध है मेरा

नन्दिनी ये सब पति से कहते हुए रोने लगती है

एक दिन अचानक नन्दिनी की मुलाकात एक लड़के से होती है

फिर दोनों की दोस्ती हो जाती है

और फ़ोन पर रोज बात करने लगते हैं

नन्दिनी को उस लड़के में अपनापन नजर आता है

क्योंकि वह उसके मां की तरह उसे समझता है

और उसके वैवाहिक जीवन को जोड़ने का प्रयास करता है

नंदिनी के मन मे आत्महत्या के विचार आते हैं और ये बात अपने दोस्त से कहती है

उसका दोस्त उसे फ़ोन पर समझाता है

की नहीं ये सही नही है

तुम बचपन से संघर्ष से जूझती आयी हो
तुम्हरा यह निर्णय सही नहीं है।

और उसे दिलाशा देता है

धीरे धीरे उनकी दोस्ती प्यार में बदल जाती है

और नन्दिनी बहुत खुश रहने लगती है

लेकिन फिर भी उसका प्रेमी उसके वैवाहिक रिश्ते को अहमियत देता है

और कहता है कि मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूँ

लेकिन इसके लिए तुम्हे मानसिक रूप से तैयार होंना पड़ेगा

मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।और शादी भी करने को तैयार हूँ

ये जानते हुए की तुम शादीशुदा हो

तुम्हरी खुशी मेरे महत्वपूर्ण है

नंदिनी बहुत खुश रहने लगी मानो उसे उसका अधिकार मिल गया वो प्यार मिल गया जिसकी उसने कल्पना की थी

एक दिन नन्दिनी के पति को उनके बात चीत के बारे जानकारी मिलती है

तो वो नन्दिनी पर बहुत नाराज होते हैं

और तलाक की धमकी देते हैं

नंदिनी अपने प्रेमी से अपने फ़ोन से बात करना बंद कर देती है

और अपने घर के ही दूसरे फ़ोन से कभी कभी अपने प्रेमी से बात करती है

आज नन्दिनी के पास एक असमंजस की स्थिति है

पति और प्यार की चाहत

दोस्तों आगे की कड़ी आपको अगले अंश में मिल जाएगी

स्त्री की गलती को न देखिए स्त्री की मजबूरी को समझिए

पति का प्रेमी और माँ के रूप में न बदलना आज नन्दिनी को प्यार तलाशने पर मजबूर करती है



© kuldeep rathore