बड़ी हवेली (कश़्मकश)
कमांडर की खोपड़ी से बात करते करते कब सुबह हो गई तनवीर को पता ही नहीं चला, उसने खिड़की से बाहर देखा तो पाया कि सूर्य की पहली किरण धरती पर पड़ने ही वाली थी, उसने कमांडर की खोपड़ी को संदूक में वापस रख दिया और उस संदूक को दीवार की रैक पर रख शेर की तस्वीर टांग दी।
कमांडर की बातें तनवीर को परेशान करने लगीं थीं। " क्या कमांडर ने जो कहा वाकई में सच था, क्या मैं ही वो लुटेरा था जिसने कमांडर की गर्दन को धड़ से अलग किया था और अगर ऐसा था तो कमांडर के दिमाग में भी बदला लेने की बात तो नहीं चल रही है", तनवीर के मन में लगातार ऐसे ख्याल आ रहे थे।
तनवीर जहाँ कमांडर की बातों से परेशान था वहीं उसकी बातें सुनकर काफ़ी डरा हुआ था। उसने अपने डर के कारण ही एक ऐसा फैसला लिया जिसकी कमांडर को भी उम्मीद ना थी। तनवीर ने फौरन ही अरुण को जगाया और सामान बाँधने की तैयारी करने लगा, उसने अपने पिता के कमरे में रखे हाथियों की मूर्तियों को भी अपने बैग में रखा और अरुण के साथ फ़ार्म हाउस से गाड़ी लेकर निकल गया।
गाड़ी अरुण ही ड्राइव कर रहा था, रास्ते में अरुण ने तनवीर से पूछा "अरे यार तन्नू, कल रात ऐसा क्या हुआ जो तुमने अचानक ही फ़ार्म हाउस छोड़ने का निर्णय ले लिया, कितना मज़ा आ रहा था वहाँ, बिलकुल शांत और शुद्ध वातावरण को छोड़कर एक दम से कानपुर के दूषित वातावरण में जाने का फैसला कर लिया, इन हाथियों की मूर्तियों में ऐसा क्या है जो इन्हें भी अपने सामान के साथ बाँध लिया "?
" कुछ नहीं बस एक ज़रूरी काम याद आ गया जो अधूरा ही छोड़ आया था और ये हाथियों की मूर्तियां मेरे वालिद की आखिरी पुरातात्विक खोज थी जो उन्होंने बड़ी हवेली में रखने को कहा था क्यूँकि ये काफ़ी रेयर कलेक्शन है बस ", तनवीर ने अरुण के सवालों का जवाब देते हुए कहा, उसने अरुण को अब तक ख़ज़ाने के उन...
कमांडर की बातें तनवीर को परेशान करने लगीं थीं। " क्या कमांडर ने जो कहा वाकई में सच था, क्या मैं ही वो लुटेरा था जिसने कमांडर की गर्दन को धड़ से अलग किया था और अगर ऐसा था तो कमांडर के दिमाग में भी बदला लेने की बात तो नहीं चल रही है", तनवीर के मन में लगातार ऐसे ख्याल आ रहे थे।
तनवीर जहाँ कमांडर की बातों से परेशान था वहीं उसकी बातें सुनकर काफ़ी डरा हुआ था। उसने अपने डर के कारण ही एक ऐसा फैसला लिया जिसकी कमांडर को भी उम्मीद ना थी। तनवीर ने फौरन ही अरुण को जगाया और सामान बाँधने की तैयारी करने लगा, उसने अपने पिता के कमरे में रखे हाथियों की मूर्तियों को भी अपने बैग में रखा और अरुण के साथ फ़ार्म हाउस से गाड़ी लेकर निकल गया।
गाड़ी अरुण ही ड्राइव कर रहा था, रास्ते में अरुण ने तनवीर से पूछा "अरे यार तन्नू, कल रात ऐसा क्या हुआ जो तुमने अचानक ही फ़ार्म हाउस छोड़ने का निर्णय ले लिया, कितना मज़ा आ रहा था वहाँ, बिलकुल शांत और शुद्ध वातावरण को छोड़कर एक दम से कानपुर के दूषित वातावरण में जाने का फैसला कर लिया, इन हाथियों की मूर्तियों में ऐसा क्या है जो इन्हें भी अपने सामान के साथ बाँध लिया "?
" कुछ नहीं बस एक ज़रूरी काम याद आ गया जो अधूरा ही छोड़ आया था और ये हाथियों की मूर्तियां मेरे वालिद की आखिरी पुरातात्विक खोज थी जो उन्होंने बड़ी हवेली में रखने को कहा था क्यूँकि ये काफ़ी रेयर कलेक्शन है बस ", तनवीर ने अरुण के सवालों का जवाब देते हुए कहा, उसने अरुण को अब तक ख़ज़ाने के उन...