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सफ़र
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शीर्षक -सफ़र
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खचा-खच भरी हुई बस में, एक हाथ से उपर की पाइप में लगे हुए हुक का सहारा लेकर जैसे-तैसे मै खुद को संभाले हुए खड़ा था और खाली सीट की तलाश में पूरी बस में चारो और देख रहा था, तभी मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी, वो थोड़ी दूर सीट पर बैठी थी, यात्रियों से भरी हुई बस में पास खड़े व्यक्ति की बगल से उस लड़की के सुर्ख लाल अधरों को ही देख पा रहा था, जिसके नीचे एक काला तिल विराजमान था, जो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था मानो ऐसा प्रतीत हो रहा हो कि पूरे बगीचे का सबसे खूबसूरत फूल वो ही गुलाब है और उसकी लाल पंखुड़ियों के बीच में काला भंवरा बैठा है , जैसे उसके सुर्ख लाल अधरों के नीचे का काला तिल था ऐसे लग रहा था मानो जैसे गुलाब सूर्य के प्रकाश में चमक कर हवाओं में झूम रहा हो उसी तरह बस के ब्रेक से उत्पन्न अवरोध से उसके लब भी बार-बार झूमते नजर आ रहे थे और चलती बस में पेडो की छांव उसके चेहरे पर बार बार इस प्रकार पड रही थी मानो बस में बैठे उस गुलाब को धूप से बचा रही हो, थोड़ी देर बाद कुछ यात्री उतरने के बाद अब मै उसे पूर्ण रूप से देख पा रहा था, मानो ऐसे लग रहा था कि बगीचे में लगे उस गुलाब को मै बहुत पास से निहार रहा हूं, उसके चेहरे पर गजब का तेज था और उसके अधरो के नीचे का काला तिल ऐसे प्रतीत हो रहा था मानो बुरी नजर से उसकी हिफाजत कर रहा हो जैसे गुलाब की हिफाजत कांटे करते है ,उसने मुझे सहजता से देखा और अधरों से प्रतिक्रिया करते हुए हल्की सी मुस्कान दी जैसे मानो गुलाब की पंखुड़ियां हवा में लहराकर मेरा स्वागत कर रही हो अब हम दोनों असहज होकर सभी की नज़रों से बचकर एक दूसरे को निहारने में मग्न थे, अचानक कंडक्टर की सीटी से एक अल्पकालीन स्वप्न से हमारी तंद्रा टूटी और हम वर्तमान में आ गए, अब मुझे वो असहज सी होकर अपनी चुन्नी को ठीक करती हुई प्रतीत हुई जिससे मुझको उसकी मांग में भरा सिंदूर दिखाई दिया जो पहले उसने चुन्नी की ओट में छुपा रखा था अब शायद मन में उत्पन्न ज्वर को उसने भी शांत कर लिया जिसकी वजह से उसके चेहरे की चमक गायब हो गई
अजीब इतिफाक हुआ,पूरी बस में जो मुझे पसंद आई वो पहले से शादीशुदा थी,मानो ऐसे हुआ पूरे बगीचे में जो गुलाब मुझे पसंद आया माली उसका सौदा पहले से ही कर चुका था अब तो मै उस गुलाब को महज देख सकता था वो भी कोसती निगाहों से.....

© aashurj31