जीवन का सत्य
जिंदगी का सत्य क्या है...?
चलो आज इसे सुकूं देने की खातिर,
ख़ुद को आंसुओं से भिगो दें,
धूं-धूं कर जलते इन तड़पते जिस्मों से,
श्वांस भरी वो आखरी चीख भी छीन लें,
दिलों में लहकती आग,
और नफरतों की खड़ी दीवार,
जो किसी चट्टान सी मजबूत अडिग है अब तक,
सुदृढ़ हृदयों की निरंतर जय जयकार,
जिसकी गूंज किसी सन्नाटे में दबकर मौन सी सुनाई देती है,
रक्त वैसे ही बिखरा पड़ा है,
सरहदों की घाटी से लेकर समुद्रतल तक,
ज़मीन चाहे बंजर ही हो,
पर केवल वर्चस्व की ही लड़ाई है अब,
अनगिनत शवों को लगातार जलते रहकर,
इस पृथ्वी के अंदर के लौह तत्व को और गर्म करना है...
चलो आज इसे सुकूं देने की खातिर,
ख़ुद को आंसुओं से भिगो दें,
धूं-धूं कर जलते इन तड़पते जिस्मों से,
श्वांस भरी वो आखरी चीख भी छीन लें,
दिलों में लहकती आग,
और नफरतों की खड़ी दीवार,
जो किसी चट्टान सी मजबूत अडिग है अब तक,
सुदृढ़ हृदयों की निरंतर जय जयकार,
जिसकी गूंज किसी सन्नाटे में दबकर मौन सी सुनाई देती है,
रक्त वैसे ही बिखरा पड़ा है,
सरहदों की घाटी से लेकर समुद्रतल तक,
ज़मीन चाहे बंजर ही हो,
पर केवल वर्चस्व की ही लड़ाई है अब,
अनगिनत शवों को लगातार जलते रहकर,
इस पृथ्वी के अंदर के लौह तत्व को और गर्म करना है...