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// विवाह - बंधन या स्पंदन //

अनु अपने ज़िन्दगी की एक ऐसी पड़ाव पर थी, जहाँ कुछ छूट रहा था तो कुछ जुड़ रहा था। कशमकश में अपनी नजरें झुका कर बैठी थी। दुल्हे वाले उसको अपने दोनों आँखों से निहार रहे थे। मन ही मन, पता नहीं, क्या क्या सवाल उठा भी रहे थे।
" हाँ, बहुत ख़ूबसूरत बीवी ढूँढा है मनु ने। नाम भी क्या बात है - अनु और मनु । लक्ष्मी है, देखो कितना अच्छा सबकुछ लाएगी वो हमारे लिए।" -मनु की चाची ठहाके लगा कर बोली।
मामी साथ देने लगी, " पहले तो नौकरी करती थी, अब वो सुशील बहू बनकर देखना सबका मन मोह लेगी।"
शादी की रात में दुल्हन मुस्काए नहीँ तो क्या करें। अनु अपने आप में ही बड़ी सुलझी हुई थी। समझदारी से काम करना उसकी ख़ासीयत थी। हँसकर सब कुछ सुनी।

" अरे! विदाई का वक़्त आ गया है,...