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स्कुल डायरी .
स्कुल डायरी School life love story

बात उन दिनों की हैं जब मैं क्लास नौवीं में पढता था। मैं आवारा था। पुरे दिन दोस्तों के साथ इधर -उधर घूम कर आवारा गर्दी किया करता था। ना पढ़ने की सूद होती थी और नहीं कभी स्कूल जाने की। वो तो मेरे पिता जी का चमत्कार था जो कभी -कभी स्कुल भी चला जाया करता था।
सच बोलूं ! मुझे पढ़ने की इच्छा बिलकुल नहीं रहती थी। मैं किसी तरह स्कुल की कष्टमय समय को एक बोझ समझ कर सह रहा था। पुरे स्कुल में मैं बहुत ही बेवक़ूफ़ लड़का समझा जाता था।
हाँ ! बेवकूफ तो जरूर समझा जाता था परन्तु दोस्तों का मैं अल्वर्ट ऑस्टिन था। अब मुझे ये पता नहीं की ये अल्वर्ट आस्टिन कौन था। लेकिन जब भी मैं कोई काम करता , तो दोस्त जरूर कहता था। यार , तुम्हारा क्या दिमाग हैं ! तुम तो बिलकुल अल्वर्ट आस्टिन हो। यह सुनकर लोगों के द्वारा बेवकूफ कहे जाने की दर्द भूल जाता था।
किसी तरह समय बीत रहा था , बीत क्या रहा था ? समझिये समय कट रही थी। घर वाले मेरे पढाई को लेकर काफी चिंतित रहते थे और मैं आवारा गर्दी करता फिरता।
एक दिन मैं स्कुल जाने के लिए घर से निकला ही था , कंधे पर लाल-पिली रंग की स्कुल बैग थी। जिसके पानी रखने वाली झोली मैंने बातो ही बात में पिछले सोमवार को दोस्तों से शर्त लगाने की वजह से फाड़ दिया था।
उस दिन मुझे स्कुल जाने की दिल बिलकुल भी नही था .मगर अधमने स्कुल की तरफ जा रहे थे . अचानक से मेरी नजर एक 5 फीट लम्बी ,पतली सी लड़की स्कुल ड्रेस में दिखी . मैं स्कूल ड्रेस देख कर ही समझ गया था की मेरे ही स्कुल की लड़की हैं .
स्कुल की कोई लड़की भी ऐसी नही थी जिसे मैं पहचानता नही था , भले ही स्कुल की शिक्षको के चेहरे दिमाग से उतर जाता हो मगर लड़कियों के चेहरे तो बिलकुल फोटो जैसे दिमाग में छपी रहती थी . मुझे इस लड़की को देख कर तर्जुब हुआ . आखिर ये कौन लड़की हैं जिसे पहचनाने से मेरा दिल का कनेक्शन कट रहा था . मैं पैरो के चाल को तेज करके उस लडकी के नजदीक पहुचने की कोशिश किया . अवसोस ! वह मुझ से पहले ही स्कूल के अंदर चली गयी .
मुझे लगा वह अब अगले दिन ही मिल पायेगी क्योकि हमारे स्कूल की नियम के अनुसार कोई भी बच्चे किसी दुसरे क्लास के बच्चे से नही मिल सकता...