...

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ख्वाहिशें
गुजरेंगी तमाम ख्वाहिशें मुझमें से
और उतरेंगे आसमां से बख्त के टुकड़े
जिन पर लगा होगा
एक जादुई ताला
जिसके खुलने को मेरी दबी हुई
शोकग्रस्त आवाज़ की दरकार होगी
मगर
उसके करीब पहुंचते ही
मैं खिलखिला उठूंगा और
भूल जाऊंगा उसे देखते ही सब व्यथाएं
इस प्रकार
नहीं खुल पाएगा वो बख्त का खजाना
और नहीं मिल पाएंगे मुझे ख्वाहिशों के बदले
खुशियों के छोटे-छोटे टुकड़े
जो भेजे गए थे सिर्फ मेरे लिए
जो आए थे खासतौर पर मेरे लिए।
क्यूंकि
मुझे धैर्यवान होना नहीं आता
शुक्रगुज़ार होना नहीं आता
मुझे आता है बस
मायूस होना या बस खिलखिला उठना।

© Akash dey