जिंदगी के किस्से
बात कुछ साल पहले की है जब रेलवे में बतौर असिस्टेंट लोको पायलट नियुक्त हो कर मैं अपनी ट्रेनिंग के लिए लुधियां गई थी ।
जिस दिन रिपोर्ट करना था मैं अपने सामान के साथ अकेले ही ट्रेनिंग सेंटर पहुंची जहां पेपर वर्क के बाद ट्रेनिंग स्कूल के प्रिंसिपल ने मुझे हॉस्टल जाने को कहा जो वहां से वॉकिंग डिस्टेंस पर था।
हॉस्टल के रास्ते से हॉस्टल के ग्राउंड तक बस लड़कों की घूरती नजरें मिली।
अंदर जाने पर एक कमरे में जो हॉस्टल का कार्यालय था एक सर थे उन्होंने मुझे एक दूसरे पुरुष को मिलाते हुए ( वो ट्रेनिंग पर आई हुई दूसरी लड़की के पिता थे) बताया कि इनके साथ चले जाओ सामने वाले कमरे में दो और लड़कियां है और आप तीनों एक कमरे में दो बेड पर एडजस्ट हो जाना।
दो फ्लोर के हॉस्टल...