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पसंद/ना-पसंद
ये यहां आधी रात को बैठी क्या लिख रही हो ???
अरुण उंगते हुए ड्राइंग रूम में आया और माया को घूरने लगा ।

मैं... बस इक कहानी का प्लॉट था आया उसी को लिख रही हूं। माया ने जवाब दिया।

ये कौन सा समय है ? फ्रिज से पानी निकाल कर पीते हुए अरुण के माथे पर त्योरियां पड़ गई। मन की भड़ास निकालते वो कमरे की तरफ बढ़ा और बोल गया, वैसे भी ये लिखना विखना फ़ालतू काम मुझे नहीं पसंद।

माया का इस बात पर चौंक जाना लाज़िमी था। खैर उसने डायरी बंद की और चुप चाप अंदर चली गई।

नींद कहां आनी थी माया को? लिखना उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा था, ये वो आदत थी जो उसको सकून देती थी।और उसके प्रशंसक उसकी लिखी हर बात को पसंद करते थे। माया को अपनी इस होंद की मरने नहीं देना था।उसने फैंसला कर लिया कि वो अरुण से इस बारे बात कर के रहेगी।

सुबह नाश्ते पर, जब अरुण त्यार होकर ऑफिस जाने को था, तो माया ने उसको देख कर कहा- ये कितनी अजीब सी टाई लगा रखी हैं? ये मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।

अरे बाबा ये मुझको पसंद हैं।और फिर टाई तो मैं हमेशा ऑफिस लगाकर जाता हूं। अरुण हज़ार सवालों को और माया की बात को सोचते ऑफिस आ गया।

माया.... माया... कहा हो बाबा ? शाम को अरुण घर आया और इक पैकेट माया को दिया।

अरे आ गए आप। और इसमें क्या है ?

तुम्हारे ही लिए हैं। रख लो। अरुण ने प्यार से मुस्कुरा कर बोला।

रात के खाने से फारिग होकर माया ने अरुण का गिफ्ट खोला।
इक खूबसूरत डायरी और पेन था। साथ में इक नोट लिखा था।
मुझे माफ़ करना माया, कल रात को जो भी मैंने कहा, वो मेरी भूल थी, शादी करी है तो इसका मतलब ये नहीं था कि मै तुमको तुम्हारी पसंद की चीजों, ख्वाहिशों से दूर कर दू।
एक दूसरे की पसंद नापसंद को तब्बजो देना जीवन साथी का फर्ज होता है।

मुझे आशा है तुमको ये तोहफा पसंद आयेगा।

माया ने मुस्कुरा कर डायरी को सीने से लगा लिया।


कविता खोसला
21.4.20