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बिगुल
//बिगुल// लघु कथा

बात उन दिनों की है जब खाड़ी में कारगिल का युद्ध छिड़ चुका था, दोनो तरफ़ से समान रूप से गोलियों की बौछारें दूर- दूर तक सुनाई दे रही थी। बख्तर बंद गाड़ियों की कतारें सड़को पर बिना रुके चली जा रही थी, बम की आवाज़ों से धरती कांप उठी थी, वीर सिपाही बेख़ौफ़ होकर लड़े जा रहे थे। उन सिपाहियों के बीच में 'जंग बहादुर' नाम का एक सिपाही था, जो कि 'गोरखा रेजिमेंट' के तरफ़ से लड़ रहा था। नाम तो जंग बहादुर था, पर वो बहुत ही डरपोक था। कैंप पर आज उसका आख़िरी दिन था, क्योंकि आज शाम को ही उसे अपने काफिलों के साथ दुश्मन के आमने- सामने होकर लड़ना था, अब तक लगभग उसके आधे से ज़्यादा वीर सैनिक मित्र शहीद हो चुके थे, अब सूची में वो था, कई दिनों से लगातार उसके कानों में गोलियों की आवाज़ें गूंज रही थी, और उसे ऐसा लग रहा था के इसी तरह के आवाज़ लिए एक गोली उसके सीने को भी छन्नी कर देगा। कुछ देर तक बैठे- बैठे वो परिवार के बारे में सोचता रहा, उसे अपना आठ वर्ष का बेटा बहुत याद आ रहा था, जिसे आते वक़्त वो सोता हुआ छोड़ कर आया था, उसके सीने से लग कर रोती हुई उसकी पत्नी को उसने लौट आने का वादा किया है , दमे की बीमारी से तड़पती हुई बूढ़ी माँ से आते वक्त वो नज़रें भी नही मिला पा रहा था , क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था के एक माँ के फ़र्ज़ के लिए दूसरी माँ को वो नज़र अंदाज़ कर रहा हो और एक महीने की बेटी जिसे उसने अब तक देखा भी ना था।
अचानक बहादुर के मन में जीने का ख्वाहिश जाग उठा, उसने फ़ैसला किया कि आज रात को वो कैप्टेन को चकमा देकर वापिस भाग जाएगा, किसी को भी पता नहीं चलेगा, अंधेरे में वो चुपचाप उल्टी दिशा की ओर चला जाएगा और किसी तरह से ख़ुद को बचा लेगा । बैठें- बैठें उसने पूरा तरकीब तैयार कर लिया, और अपने परिचय पत्र को ऊपर की तरफ़ रखा ताकि भागने से पहले जंग के मैदान की तरफ़ उसे फेंक देगा जिससे किसी को भी कुछ पता नहीं चलेगा। और घर पहुँचकर परिवार वालों को लेकर , अपना नाम और परिचय बदलके कहीं दूर चला जाएगा। वो ये सब सोच में डूबा ही हुआ था के तभी उसका एक मित्र आकर उसको एक पत्र पकड़ाकर जाता है,
उसने एक नई उमंग के साथ पत्र को खोला तो चौंक उठा
पत्र उसके आठ वर्ष के बेटे ने टूटे- फूटे अक्षरों में लिखा था:-

प्रिय बाबा
आप दुश्मनों को मार कर के ही वापिस आना, और घर का बिल्कुल फिक्र मत करना, मैं बड़ा हो गया हूं और बहादुर बाबा का बहादुर बेटा हूं, मैं सब कुछ सम्भाल लूंगा! आप दुश्मनों से कहना के मेरे देश को छोड़ दे, नही तो जब मैं बड़ा होकर "जेट पायलट" बन जाऊंगा तो उन सबको उड़ा दूंगा। आप जब वापिस आओगे तो मेरे लिए असली वाला बंदूक ले आना, मुझे भी आप जैसा वीर और बहादुर बनना हैं।
और बाबा अगर आप तिरंगे में लिपटकर आएंगे, तो मैं बिल्कुल भी नही रोऊंगा और सबसे पहला सैल्यूट आपको मैं दूंगा।
बहादुर बाबा का बहादुर बेटा
' टाइगर'

इस चिट्ठी को पढ़कर बहादुर की आँखें भर आई, वो सोचने लगा कि वो क्या करने जा रहा था, अगर आज उसके बेटे ने उसके लड़खड़ाते हुए कदमों को ना रोका होता तो अनर्थ हो जाता, वो क्या मुंह दिखाता अपने बच्चों को। उसके कायरता का किस्सा सुनकर उसके बच्चों का शर्म से सिर झुक जाता।
अब उसके अंदर जोश और नई स्फूर्ति भर जाता है, वो अपने मुट्ठी को कसते हुए आँखें बंद करके मन ही मन अपने बेटे का शुक्रिया अदा करता हैं,जिसने उसको बुजदिल बनने से बचा लिया था।

शाम होते ही जैसे ही "बिगुल" बजता है, सबसे पहले अस्त्र- शस्त्र से लेस होकर वहां जंग बहादुर खड़ा हो जाता है, आज उसके आँखों में अद्भुत तेज़ दिखाई दे रहा था, हाथों ने जोश के साथ बंदूक को कसकर पकड़ा हुआ था, आज खाड़ी से आने वाली प्रत्येक गोलियों की आवाज़ें उसमे न‌ई जोश भर रही थी और अपने कदमों को वो शत्रुओं के तरफ़ जल्द से जल्द जाने को कह रहा था।
कैप्टेन ने जैसे ही चलने का निर्देश दिया, जंग बहादुर ने ख़ुद सबसे आगे खड़े होने का आग्रह करते हुए कहा - "सर मेरे शहीद हो जाने पर मेरे बहादुरी का किस्सा मेरे बच्चों तक तो पहुँच जाएगा ना? उसके तरफ़ फक्र और हैरानी से देखते हुए उसका पीठ थपथपाते हुए कैप्टेन ने कहा - "वाय नोट माय बॉय, वाय नोट"।
बहादुर तो दुश्मनों के गोली से नहीं बच पाया लेकिन मरने से पहले दुश्मनों के मनसूबो को नास्ता नाबूद करते हुए बीस से ज़्यादा दुश्मनों को अकेले ही मार गिराया। भारत के सूरवीरो ने
दुश्मनों को हराकर 'ऑपरेशन विजय' को सफ़ल बना दिया, बहादुर जैसे ही सैंकड़ों वीर इस युद्ध में शहीद हुए और तिरंगे से लिपटकर तिरंगे की शान बने।
©हेमा