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नारी बनी पहेली
मैं अपने पाठकों के समक्ष समाज में जो लोग एक स्त्री के बारे में जो सोच रखते हैं उसी को अपने लेख के माध्यम से बता रही हूं
आज के समय में भी इतना विकसित और शिक्षित होने के बावजूद भी मनुष्य गलत सोच का आधी हो गया है
आज के समय में भी एक स्त्री को कोई नहीं समझता है ना समझना चाहता है
एक नारी के साथ ये सब उसके जन्म से ही शुरू हो जाता है
पहले तो उसके मां- बाप जिन्हें बेटी नहीं बेटा चाहिए
ऐसा लगता है जैसे जागरूकता शिक्षित होना किताबों तक ही सीमित बनकर रह गया है व्यक्ति की सोच अभी भी नहीं बदली है
आज भी समाज में बेटी होने पर स्त्री को परेशान करते हैं कहीं-कहीं पर तो गर्भपात करा देते हैं
मां के गर्भ में पल रही बच्ची का क्या दोष है जिसे जन्म से पहले ही मार दिया जाता है
आज वह बच्ची इस समाज के हर पुरुष से पूछ रही है हमारा क्या दोष है जो हमें इस दुनिया में आने नहीं दिया जाता
लेकिन फिर भी कुछ स्त्रियों और पुरुषों ने एक बेटी को एक नारी को ऊंचा उठाने की कोशिश की है आज के समय में काफी कुछ बदला है लेकिन फिर वह मोड़ आया की बेटे को अच्छे स्कूल में दाखिला ट्यूशन की सुविधा दी
लेकिन उस बेटी को ऐसे ही स्कूल में दाखिल करा दिया जाता है
जिंदगी में वो मोड फिर आया जब वो पढ़ने के लिए घर से निकली तो उस बेटी को कुटिल सोच के नर पशु तुल्य राक्षसों ने रास्ते में उस बेटी की आबरू छीन ली उस स्त्री को भोग वासना समझा
वैसा ही डरावना मोड़ फिर आया शादी हुई तो पति सास " ससुर
ने धन लेने का साधन बनाया शादी जैसा पवित्र बंधन
वह मोड फिर आया जब एक लड़की शादी करके अपने पति के घर आई लेकिन उसको वहां पर भी एक सास ने उस स्त्री को ना बहू माना ना सम्मान दिया उसे सिर्फ काम करने वाली नौकरानी समझा
उस स्त्री के जीवन में फिर दुख भरा मोड़ आया उस स्त्री को उसके बेटे ने उसके लालन पालन के कर्ज को फर्ज बात कर ठुकरा दिया
अपने पिता के घर गई तो पिता और भाइयों ने कहां की लड़की का असली घर तो ससुराल होता है
बेटी तो पराया धन होती है
यह कहकर पल्ला झाड़ लिया इधर पति और ससुराल वालों ने भी सम्मान नहीं दिया अब वह कहां जाए जो स्त्री जगत की पालक हैं पालनहार है आज उसी का अस्तित्व खतरे में है उसी को सम्मान नहीं दिया जाता
आज उसकी ही पहचान नहीं ऐसे में वह जाए तो कहां जाए
यह चराचर पूरा संसार एक स्त्री के बिना घास के सूखे तिनके के बराबर है क्योंकि वास्तविक जगत की पहचान है स्त्रियां इन्हें कभी भी कम मत आंकना !!


हे मनुष्य हो सके तो एक स्त्री को सम्मान देना सीख
क्योंकि तू भी उस स्त्री का ही अंश है!!
© Mamta