अंकुश का सरप्राइज
'अगले सोमवार तक पैसे लौटा देना, नहीं तो तेरे गांव जाकर तेरे पापा से वसूलूंगा...।' हंगामा सुनकर मैंने सीट से उठकर देखा तो बाहर गैलरी में अंकुश को घेरकर तिवारी खड़ा था। तिवारी यानी हुए अंकुश का मकान मालिक। अक्सर दफ्तर आते रहता था, इसलिए सब उसे जानने लगे थे। अंकुश को उसका किराया दिए महीनों हो गए थे। दफ्तर में शायद ही ऐसा कोई हो, जिससे अंकुश ने कभी पैसे उधार न लिए हों । ऑफिस बॉय तक उसे देखकर रास्ता बदल लेते। उनसे भी मांगने में उसे शर्म नहीं आती थी। मैं थोड़ा लकी था । अंकुश मेरा दोस्त था... और उससे भी ऊपर, मेरे पा इतने पैसे ही नहीं होते थे कि उधार दे पाऊं। अंकुश पर मेरे भी पैसे आते थे, लेकिन उतने नहीं जितने तिवारी के जो अंकुश की...