अमीर गरीब की सोच भगाओ
हमारे सोसाइटी में आज भी ऐसे लोग हैं जो अमीर गरीबी को लेकर एक दूसरे को अपने से अलग मानते हैं।ऐसा ही एक सोसाइटी है डिक्ससित सोसाइटी।
डिक्ससित सोसाइटी में बहुत से परिवार रहते हैं उनमें से एक है सिंह परिवार और दूसरा है चौधरी परिवार।सिंह परिवार में चार सदस्य हैं हरप्रीत सिंह ,पत्नी रेस्मा सिंह ,बड़ा बेटा मिस्ठान सिंह और नीलम सिंह छोटी बेटी।उसी तरह चौधरी परिवार में भी हैं चार सदस्य हैं, मुंसित चौधरी ,पत्नी रेखा चौधरी,मीठी चौधरी छोटी बेटी और ऋत्विक चौधरी बड़ा बेटा।
सिंह परिवार कभी किसीसे मिलते नहीं थे ।उनमें हमेसा एक घमंड थी अपनी अमीर होने के वजह से,पर उनका बडा बेटा मिस्ठान थोड़ा सा अलग था ।वो हमेशा सबके साथ मिलना चाहता था, पर एक दर उसे हमेशा रोक देता था।
मिस्ठान और ऋत्विक एक साथ पढ़ते थे ,पर कभी आपस मे बात नहीं करते और खेलते भी नही थे ।बस अपने पिताजी के वजह से मिस्ठान कभी मिलता नहीं था क्योंकी अगर ये बात पिताजी को पता चल जाता तो उसे बहुत दाट पड़ेगी।
एक सुबह ,
जब नीलम और मिस्ठान अपने सोसाइटी में खेल रहे थे ,उसी बीच मीठी और ऋत्विकक भी पहुंचे वहां ।
मीठी- क्या हम तुम्हारे साथ खेल सकते हैं?
मिस्ठान-वो खुस हो गया और कहा,
क्यों नही ,मिलके खेलने से तो और मजा आएगा।
नीलम- ये क्या कह रहे हो भया?
मिस्ठान-अरे! क्या हुआ नीलम ,इसमे गलत क्या है ।
नीलम- नहीं में नहीं खेल सकती ।ऐसे कहके नीलम निकल गयी घर की और ।
मिस्ठान- मीठी और ऋत्विक चलो हम खेलते हैं।
मीठी - नहीं दोस्त,आज नहीं फिर कभी खेलेंगे ,चलो ऋत्विक घर चलो।
ऋत्विक- अच्छा ठीक है ।
ये कहके मीठी और ऋत्विक भी उदाश होकर चले गऐ। ये बात मिस्ठान को बहुत बुरा लगा,वो भी वहां से उदास होकर चलागया।
घर पहूंचने से पहले ही नीलम सारि बाते अपने पिताजी को बता रही थी।
तभी मिस्ठान वहां पहुंचा।सभी उसको घुसे से देख रहे थे।
मिस्ठान- क्या हुआ ,सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो?
पिताजी - घुसेसे ,मिस्ठान ये सब किया है ,तुम खेलने गए थे ना।तुम मुझे क्यों नहीं समझते ,में तुम्हरा भला चाहता हुँ।
मिस्ठान- गुमसुम होकर,मुझे माफ करदो पिताजी ।
बस इतना ही कहके ,मिस्ठान अपने कमरे की और निकल गया।
ये देखकर उसके माँ को थोड़ा बुरा लगा ।वो मिस्ठान के कमरे में जाकर उसे समझाने लगी,
रेस्मा- बेटा ,ये सब किया है,पिताजी के बात को ऐसे बुरा नहीं समझते। वो तो ऐसे ही हैं।उन्हें गलत मत समझना।
मिस्ठान-नहीं माँ, मेने कब गलत कहा ,मुझे बस अच्छा नहीं लग रहा है ,थोड़ा सा लेट लेता हुँ।
रेस्मा-नहीं पहले कुछ खा लो फिर सोजाना।
मिस्ठान- नही माँ, तुम जाओ थोड़ी देर में आता हुँ।
रेस्मा-अच्छा ठीक है जल्दी आजान।
ऐसा कहके माँ चलिगयी वहां से ।
फिर अपने कमरे में मिस्ठान रोने लगा और ऐसे ही बिना खाये सो गया।
अगली सुबह ,मिस्ठान को नीलम बुलाने आई
नीलम -चलो भया खेलने।
मिस्ठान- नहीं नीलम तुम जाओ खेलने।आज मन नहीं है खेलने को।
नीलम- पर मुझे अकेले खेलने में क्या मजा आएगा।
मिस्ठान- सही बोली नीलम ,दोस्तों के साथ खेलने में जो मजा है वो और कहां ।
नीलम-ठीक है।
नीलम खेलने चलीगयी सबको खेलते देख उसे अच्छा नहीं लगा, उसे मजा नही आया फिर घर वापस आगयी।आते ही सोचने लगी भया सच बोल रहे थे अकेले खेलने में मजा कहाँ।पिताजी ये बात संमझते नहीं।ऐसे भेद भाब क्यों मन मे रखें हैं,जिससे हमे कभी सुख नही मिलेगी।ऐसे सोचते सोचते ही वो सो गई।
कुछ दिन बाद दीपावली का त्यौहार आया सब सोसाइटी वाले घर को फूलों से सजाए और मिठाई बांटने लगे ।चौधरी परिवार वाले भी मिठाई बांटने लगे सबको ।मीठी और ऋत्विक अपने सारे दोस्तों को मिठाई बांटने लगे,ऐसे में वो मिस्ठान और नीलम को भी मिठाई बांटना चाहते थे।इसीलिए ऋत्विक ने अपने माताजी को कहा,
ऋत्विक-माँ!
रेखा-हां बेटा बोलो।
ऋत्विक-मुझे और मीठी को नीलाम और मिस्ठान को भी मिठाई देनी है।
रेखा-हम क्या मना करते हैं,उनके परिवार वाले नहीं लेंगे हमसे ये उपहार।
ऋत्विक-पर हमें देना हैं।
रेखा- तुम्हारे पिताजी सुनेंगे तो तुम्हे डांटेंगे।
ऋत्विक-अच्छा ठीक है।
सारे सोसाइटी के लोग बाहर निकल कर मजा कर रहे थे ,सब एक दूसरे को बधाई जता रहे थे,तभी मिस्ठान और नीलम भी वहां पहुंचे।वो सबको देख रहे थे पर किसने भी उनकी और देखा नही।तभी मीठी और ऋत्विक उनके पास पहुंचे और बोले,
मीठी-अरे ऋत्विक और नीलम,इधर आओ ,वहां क्यों खड़े हो।
ऋत्विक- हां ,आओ दोस्तों ।
मिस्ठान-दीपावली की हार्दिक सुभकामनाएँ तुम दोनों को।
मीठी- तुम दोनों को भी।आओ सबको भी सुभकामनाऐं दो।
मिस्ठान- मुस्कुराके,अच्छा ठीक है चलो।
नीलम-नहीं में नहीं जाउंगी,मुंझे बहुत बुरा लग रहा है ,मेने हमेसा सबको खराप व्यवहार दिखाई।
मिस्ठान- अरे बहेना चलो ,ये सब सोचके किया होगा।
नीलम-अच्छा ठीक है चलो ।
दोनो को देखके सब खुस हो गए ,उनको गले लगाके सबको सुभकामनाएँ जता के ,मिठाई खिलाये।तभी मीठी और ऋत्विक के माता आये।
रेखा-आओ बचो हमारे घर।
नीलम-नही आंटी,फिट कभी।
ये कहके दोनों चले गए अपने घर।
तभी उनके माँ ने पूछा ,कहाँ गए थे दोनो ,पापा तुम्हे कब से ढूंढ रहे हैं।
नीलम-माँ आज दीपावली का दिन है, बाहर सब मजा कर रहे हैं और हम क्यों नही उनके साथ मिल कर दीपावली बना सकते।
रेस्मा- नहीं बेटी हम मिलके घर पे मनाते हैं ना चलो।
मिस्ठान-नही माँ ,नीलम सही बोल रही है ,हम एक सोसाइटी में रहते हुए भी कभी सबके साथ मिल नहीं पाए,सबके साथ मिलझुल कर मनना एक पर्व कितना अच्छा लगता है ।हम भी मनाऐंगे ना मां।
रेस्मा- आँखे भर आयी, सुनके अपने बेटे से ये बात।उसने ये सुनकर अपने पति के पास गई,
रेस्मा- आज का त्योहार कितना खुसी का त्योहार है ।
हरप्रीत-वो तो है,पर किया हुआ ,ऐसे क्यों पूछ रही हो।
रेस्मा- नहीं,बस बच्चे अपने दोस्तों के साथ मिलके मनाना चाहते थे।
हरप्रीत- ये कभी नहीं हो सकता,हम ठहरे एक अमीर खानदान से, उनके साथ हमारे बच्चे कभी मिल नहीं सकते।
रेस्मा-पर बच्चे सही बोल रहे हैं।
हरप्रीत- ये क्या बोल रही हो।
रेस्मा-हमने कभी उनको किसीसे मिलने नहीं दिया,किसके साथ खेलने नहीं दिया,उनकी बचपन ही उनसे छुड़ा कर ले लिया।अभी आप खुद सोचो अगर एक सोसाइटी में रहके हम ऐसा भेद भाब करेंगे तो कैसे होगा।सही में बच्चे ने मेरे तो आंखे खोल दिये,अच्छा अब तुम सोचो तुम्हे क्या करना है,मे तो यही सोचती हूँ।ये कहके रेस्मा चलिगई वहां से।
हरप्रीत काफी देर सोचने लगा, किया मेने सचमे अपने बच्चों अपने तरीके से जबरदस्ती रखने की कोशिश किया।ऐसे और भी कई बातें सोचते हुए बिना कुछ खाए सो गया।
अगली सुबह..
सब बच्चे खेल रहे थे तभी अचानक वहां हरप्रीत भी पहूंच गया अपने दोनों बच्चों के साथ और सबके साथ खेलने लगे।
ये देखके रेखा और मिस्टिन के साथ सारे सोसाइटी के लोग आस्चर्य हो गए और कभी यकीन ही नहीं कर पाए कि ऐसा भी ऐक दिन आयेगा।
सबसे ज्यादा खुस हुई रेस्मा ,रोने लगे गयी और हरप्रीत को देखके बोली ,में कभी सोच भी नहीं सकी की आप इतना बदल जाओगे। दोनो बच्चों ने अपने पिताजी गो गले लगाया और धन्यबाद बोले।
तभी हरप्रीत सब सोसाइटी बाले बस यही कहना चाहता था
हरप्रीत-सबको बस इतना प्राथना है कि मुझे माफ करदो,मेने आप सबको बहुत दुख दिया,अपनी घमंड के कारण में कभी किसीसे मिल नहीं पाया यहां तक कि मैने अपने बच्चों को भी सबसे दूर रखा।ये तो मेरे बच्चे हैं जिन्होंने मेरी आँखें खोल दिये,आज मुझे समझ मे आया की अपनी घमंड ही खुदको सबसे दूर करदेती है।बस इतनी बिनती है सबसे हो सके तो मयूझे माफ करदो।
ये सुनके सारे सोसाइटी की निवासी के आंखों में आँशु आगयी,मुंसित और रेखा ने हरप्रीत और रेस्मा को गले लगाके ,उनसे सहानुभूति देने लगे।
मुंसित-छोडो सारी पुरानी बाते।अब हम सब एक हैं।और मिलकर हीं रहेंगे ,हमे खुसी है कि आपने अपनी गलती का एहसास किया।ऐसे सब नहीं होते।
हरप्रीत और रेखा सबको खुसी से देखते हुए कहा धन्यबाद आप सबको।
फिर मीठी और ऋत्विक के खुसी का वर्णण भी नहीं कर सकते ।दोनो मिस्ठान और नीलम को लेके अपने सारे दोस्तों से मिलाए और हँसी खुसी एक परिवार की तरह रहने लगे।
जो भी त्योहार आये या फिर उत्सब आये सब मे ज्यादा हरप्रीत आघे अपना हाथ बढ़ाता था इसीतरह साबको सहायता करने लगा ।इसी तरह डिक्ससित सोसाइटी में खुशियाली छाने लगा।और हरप्रीत सारे घमंड मिताडिया और एक नई ज़िंदगी की सुरुवात किया अपने परिवार के साथ।
Moral-सोसाइटी में बहुत से लोग रहते हैं। कोई गरीब तो कोई अमीर होते हैं,अगर सब लोग बिना कुछ सोचे सब एक होक रहे तो एक सोसाइटी भी एक परिवार बन सकता है।
© dipika
डिक्ससित सोसाइटी में बहुत से परिवार रहते हैं उनमें से एक है सिंह परिवार और दूसरा है चौधरी परिवार।सिंह परिवार में चार सदस्य हैं हरप्रीत सिंह ,पत्नी रेस्मा सिंह ,बड़ा बेटा मिस्ठान सिंह और नीलम सिंह छोटी बेटी।उसी तरह चौधरी परिवार में भी हैं चार सदस्य हैं, मुंसित चौधरी ,पत्नी रेखा चौधरी,मीठी चौधरी छोटी बेटी और ऋत्विक चौधरी बड़ा बेटा।
सिंह परिवार कभी किसीसे मिलते नहीं थे ।उनमें हमेसा एक घमंड थी अपनी अमीर होने के वजह से,पर उनका बडा बेटा मिस्ठान थोड़ा सा अलग था ।वो हमेशा सबके साथ मिलना चाहता था, पर एक दर उसे हमेशा रोक देता था।
मिस्ठान और ऋत्विक एक साथ पढ़ते थे ,पर कभी आपस मे बात नहीं करते और खेलते भी नही थे ।बस अपने पिताजी के वजह से मिस्ठान कभी मिलता नहीं था क्योंकी अगर ये बात पिताजी को पता चल जाता तो उसे बहुत दाट पड़ेगी।
एक सुबह ,
जब नीलम और मिस्ठान अपने सोसाइटी में खेल रहे थे ,उसी बीच मीठी और ऋत्विकक भी पहुंचे वहां ।
मीठी- क्या हम तुम्हारे साथ खेल सकते हैं?
मिस्ठान-वो खुस हो गया और कहा,
क्यों नही ,मिलके खेलने से तो और मजा आएगा।
नीलम- ये क्या कह रहे हो भया?
मिस्ठान-अरे! क्या हुआ नीलम ,इसमे गलत क्या है ।
नीलम- नहीं में नहीं खेल सकती ।ऐसे कहके नीलम निकल गयी घर की और ।
मिस्ठान- मीठी और ऋत्विक चलो हम खेलते हैं।
मीठी - नहीं दोस्त,आज नहीं फिर कभी खेलेंगे ,चलो ऋत्विक घर चलो।
ऋत्विक- अच्छा ठीक है ।
ये कहके मीठी और ऋत्विक भी उदाश होकर चले गऐ। ये बात मिस्ठान को बहुत बुरा लगा,वो भी वहां से उदास होकर चलागया।
घर पहूंचने से पहले ही नीलम सारि बाते अपने पिताजी को बता रही थी।
तभी मिस्ठान वहां पहुंचा।सभी उसको घुसे से देख रहे थे।
मिस्ठान- क्या हुआ ,सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो?
पिताजी - घुसेसे ,मिस्ठान ये सब किया है ,तुम खेलने गए थे ना।तुम मुझे क्यों नहीं समझते ,में तुम्हरा भला चाहता हुँ।
मिस्ठान- गुमसुम होकर,मुझे माफ करदो पिताजी ।
बस इतना ही कहके ,मिस्ठान अपने कमरे की और निकल गया।
ये देखकर उसके माँ को थोड़ा बुरा लगा ।वो मिस्ठान के कमरे में जाकर उसे समझाने लगी,
रेस्मा- बेटा ,ये सब किया है,पिताजी के बात को ऐसे बुरा नहीं समझते। वो तो ऐसे ही हैं।उन्हें गलत मत समझना।
मिस्ठान-नहीं माँ, मेने कब गलत कहा ,मुझे बस अच्छा नहीं लग रहा है ,थोड़ा सा लेट लेता हुँ।
रेस्मा-नहीं पहले कुछ खा लो फिर सोजाना।
मिस्ठान- नही माँ, तुम जाओ थोड़ी देर में आता हुँ।
रेस्मा-अच्छा ठीक है जल्दी आजान।
ऐसा कहके माँ चलिगयी वहां से ।
फिर अपने कमरे में मिस्ठान रोने लगा और ऐसे ही बिना खाये सो गया।
अगली सुबह ,मिस्ठान को नीलम बुलाने आई
नीलम -चलो भया खेलने।
मिस्ठान- नहीं नीलम तुम जाओ खेलने।आज मन नहीं है खेलने को।
नीलम- पर मुझे अकेले खेलने में क्या मजा आएगा।
मिस्ठान- सही बोली नीलम ,दोस्तों के साथ खेलने में जो मजा है वो और कहां ।
नीलम-ठीक है।
नीलम खेलने चलीगयी सबको खेलते देख उसे अच्छा नहीं लगा, उसे मजा नही आया फिर घर वापस आगयी।आते ही सोचने लगी भया सच बोल रहे थे अकेले खेलने में मजा कहाँ।पिताजी ये बात संमझते नहीं।ऐसे भेद भाब क्यों मन मे रखें हैं,जिससे हमे कभी सुख नही मिलेगी।ऐसे सोचते सोचते ही वो सो गई।
कुछ दिन बाद दीपावली का त्यौहार आया सब सोसाइटी वाले घर को फूलों से सजाए और मिठाई बांटने लगे ।चौधरी परिवार वाले भी मिठाई बांटने लगे सबको ।मीठी और ऋत्विक अपने सारे दोस्तों को मिठाई बांटने लगे,ऐसे में वो मिस्ठान और नीलम को भी मिठाई बांटना चाहते थे।इसीलिए ऋत्विक ने अपने माताजी को कहा,
ऋत्विक-माँ!
रेखा-हां बेटा बोलो।
ऋत्विक-मुझे और मीठी को नीलाम और मिस्ठान को भी मिठाई देनी है।
रेखा-हम क्या मना करते हैं,उनके परिवार वाले नहीं लेंगे हमसे ये उपहार।
ऋत्विक-पर हमें देना हैं।
रेखा- तुम्हारे पिताजी सुनेंगे तो तुम्हे डांटेंगे।
ऋत्विक-अच्छा ठीक है।
सारे सोसाइटी के लोग बाहर निकल कर मजा कर रहे थे ,सब एक दूसरे को बधाई जता रहे थे,तभी मिस्ठान और नीलम भी वहां पहुंचे।वो सबको देख रहे थे पर किसने भी उनकी और देखा नही।तभी मीठी और ऋत्विक उनके पास पहुंचे और बोले,
मीठी-अरे ऋत्विक और नीलम,इधर आओ ,वहां क्यों खड़े हो।
ऋत्विक- हां ,आओ दोस्तों ।
मिस्ठान-दीपावली की हार्दिक सुभकामनाएँ तुम दोनों को।
मीठी- तुम दोनों को भी।आओ सबको भी सुभकामनाऐं दो।
मिस्ठान- मुस्कुराके,अच्छा ठीक है चलो।
नीलम-नहीं में नहीं जाउंगी,मुंझे बहुत बुरा लग रहा है ,मेने हमेसा सबको खराप व्यवहार दिखाई।
मिस्ठान- अरे बहेना चलो ,ये सब सोचके किया होगा।
नीलम-अच्छा ठीक है चलो ।
दोनो को देखके सब खुस हो गए ,उनको गले लगाके सबको सुभकामनाएँ जता के ,मिठाई खिलाये।तभी मीठी और ऋत्विक के माता आये।
रेखा-आओ बचो हमारे घर।
नीलम-नही आंटी,फिट कभी।
ये कहके दोनों चले गए अपने घर।
तभी उनके माँ ने पूछा ,कहाँ गए थे दोनो ,पापा तुम्हे कब से ढूंढ रहे हैं।
नीलम-माँ आज दीपावली का दिन है, बाहर सब मजा कर रहे हैं और हम क्यों नही उनके साथ मिल कर दीपावली बना सकते।
रेस्मा- नहीं बेटी हम मिलके घर पे मनाते हैं ना चलो।
मिस्ठान-नही माँ ,नीलम सही बोल रही है ,हम एक सोसाइटी में रहते हुए भी कभी सबके साथ मिल नहीं पाए,सबके साथ मिलझुल कर मनना एक पर्व कितना अच्छा लगता है ।हम भी मनाऐंगे ना मां।
रेस्मा- आँखे भर आयी, सुनके अपने बेटे से ये बात।उसने ये सुनकर अपने पति के पास गई,
रेस्मा- आज का त्योहार कितना खुसी का त्योहार है ।
हरप्रीत-वो तो है,पर किया हुआ ,ऐसे क्यों पूछ रही हो।
रेस्मा- नहीं,बस बच्चे अपने दोस्तों के साथ मिलके मनाना चाहते थे।
हरप्रीत- ये कभी नहीं हो सकता,हम ठहरे एक अमीर खानदान से, उनके साथ हमारे बच्चे कभी मिल नहीं सकते।
रेस्मा-पर बच्चे सही बोल रहे हैं।
हरप्रीत- ये क्या बोल रही हो।
रेस्मा-हमने कभी उनको किसीसे मिलने नहीं दिया,किसके साथ खेलने नहीं दिया,उनकी बचपन ही उनसे छुड़ा कर ले लिया।अभी आप खुद सोचो अगर एक सोसाइटी में रहके हम ऐसा भेद भाब करेंगे तो कैसे होगा।सही में बच्चे ने मेरे तो आंखे खोल दिये,अच्छा अब तुम सोचो तुम्हे क्या करना है,मे तो यही सोचती हूँ।ये कहके रेस्मा चलिगई वहां से।
हरप्रीत काफी देर सोचने लगा, किया मेने सचमे अपने बच्चों अपने तरीके से जबरदस्ती रखने की कोशिश किया।ऐसे और भी कई बातें सोचते हुए बिना कुछ खाए सो गया।
अगली सुबह..
सब बच्चे खेल रहे थे तभी अचानक वहां हरप्रीत भी पहूंच गया अपने दोनों बच्चों के साथ और सबके साथ खेलने लगे।
ये देखके रेखा और मिस्टिन के साथ सारे सोसाइटी के लोग आस्चर्य हो गए और कभी यकीन ही नहीं कर पाए कि ऐसा भी ऐक दिन आयेगा।
सबसे ज्यादा खुस हुई रेस्मा ,रोने लगे गयी और हरप्रीत को देखके बोली ,में कभी सोच भी नहीं सकी की आप इतना बदल जाओगे। दोनो बच्चों ने अपने पिताजी गो गले लगाया और धन्यबाद बोले।
तभी हरप्रीत सब सोसाइटी बाले बस यही कहना चाहता था
हरप्रीत-सबको बस इतना प्राथना है कि मुझे माफ करदो,मेने आप सबको बहुत दुख दिया,अपनी घमंड के कारण में कभी किसीसे मिल नहीं पाया यहां तक कि मैने अपने बच्चों को भी सबसे दूर रखा।ये तो मेरे बच्चे हैं जिन्होंने मेरी आँखें खोल दिये,आज मुझे समझ मे आया की अपनी घमंड ही खुदको सबसे दूर करदेती है।बस इतनी बिनती है सबसे हो सके तो मयूझे माफ करदो।
ये सुनके सारे सोसाइटी की निवासी के आंखों में आँशु आगयी,मुंसित और रेखा ने हरप्रीत और रेस्मा को गले लगाके ,उनसे सहानुभूति देने लगे।
मुंसित-छोडो सारी पुरानी बाते।अब हम सब एक हैं।और मिलकर हीं रहेंगे ,हमे खुसी है कि आपने अपनी गलती का एहसास किया।ऐसे सब नहीं होते।
हरप्रीत और रेखा सबको खुसी से देखते हुए कहा धन्यबाद आप सबको।
फिर मीठी और ऋत्विक के खुसी का वर्णण भी नहीं कर सकते ।दोनो मिस्ठान और नीलम को लेके अपने सारे दोस्तों से मिलाए और हँसी खुसी एक परिवार की तरह रहने लगे।
जो भी त्योहार आये या फिर उत्सब आये सब मे ज्यादा हरप्रीत आघे अपना हाथ बढ़ाता था इसीतरह साबको सहायता करने लगा ।इसी तरह डिक्ससित सोसाइटी में खुशियाली छाने लगा।और हरप्रीत सारे घमंड मिताडिया और एक नई ज़िंदगी की सुरुवात किया अपने परिवार के साथ।
Moral-सोसाइटी में बहुत से लोग रहते हैं। कोई गरीब तो कोई अमीर होते हैं,अगर सब लोग बिना कुछ सोचे सब एक होक रहे तो एक सोसाइटी भी एक परिवार बन सकता है।
© dipika