अमीर गरीब की सोच भगाओ
हमारे सोसाइटी में आज भी ऐसे लोग हैं जो अमीर गरीबी को लेकर एक दूसरे को अपने से अलग मानते हैं।ऐसा ही एक सोसाइटी है डिक्ससित सोसाइटी।
डिक्ससित सोसाइटी में बहुत से परिवार रहते हैं उनमें से एक है सिंह परिवार और दूसरा है चौधरी परिवार।सिंह परिवार में चार सदस्य हैं हरप्रीत सिंह ,पत्नी रेस्मा सिंह ,बड़ा बेटा मिस्ठान सिंह और नीलम सिंह छोटी बेटी।उसी तरह चौधरी परिवार में भी हैं चार सदस्य हैं, मुंसित चौधरी ,पत्नी रेखा चौधरी,मीठी चौधरी छोटी बेटी और ऋत्विक चौधरी बड़ा बेटा।
सिंह परिवार कभी किसीसे मिलते नहीं थे ।उनमें हमेसा एक घमंड थी अपनी अमीर होने के वजह से,पर उनका बडा बेटा मिस्ठान थोड़ा सा अलग था ।वो हमेशा सबके साथ मिलना चाहता था, पर एक दर उसे हमेशा रोक देता था।
मिस्ठान और ऋत्विक एक साथ पढ़ते थे ,पर कभी आपस मे बात नहीं करते और खेलते भी नही थे ।बस अपने पिताजी के वजह से मिस्ठान कभी मिलता नहीं था क्योंकी अगर ये बात पिताजी को पता चल जाता तो उसे बहुत दाट पड़ेगी।
एक सुबह ,
जब नीलम और मिस्ठान अपने सोसाइटी में खेल रहे थे ,उसी बीच मीठी और ऋत्विकक भी पहुंचे वहां ।
मीठी- क्या हम तुम्हारे साथ खेल सकते हैं?
मिस्ठान-वो खुस हो गया और कहा,
क्यों नही ,मिलके खेलने से तो और मजा आएगा।
नीलम- ये क्या कह रहे हो भया?
मिस्ठान-अरे! क्या हुआ नीलम ,इसमे गलत क्या है ।
नीलम- नहीं में नहीं खेल सकती ।ऐसे कहके नीलम निकल गयी घर की और ।
मिस्ठान- मीठी और ऋत्विक चलो हम खेलते हैं।
मीठी - नहीं दोस्त,आज नहीं फिर कभी खेलेंगे ,चलो ऋत्विक घर चलो।
ऋत्विक- अच्छा ठीक है ।
ये कहके मीठी और ऋत्विक भी उदाश होकर चले गऐ। ये बात मिस्ठान को बहुत बुरा लगा,वो भी वहां से उदास होकर चलागया।
घर पहूंचने से पहले ही नीलम सारि बाते अपने पिताजी को बता रही थी।
तभी मिस्ठान वहां पहुंचा।सभी उसको घुसे से देख रहे थे।
मिस्ठान- क्या हुआ ,सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो?
पिताजी - घुसेसे ,मिस्ठान ये सब किया है ,तुम खेलने गए थे ना।तुम मुझे क्यों नहीं समझते ,में तुम्हरा भला चाहता हुँ।
मिस्ठान- गुमसुम होकर,मुझे माफ करदो...
डिक्ससित सोसाइटी में बहुत से परिवार रहते हैं उनमें से एक है सिंह परिवार और दूसरा है चौधरी परिवार।सिंह परिवार में चार सदस्य हैं हरप्रीत सिंह ,पत्नी रेस्मा सिंह ,बड़ा बेटा मिस्ठान सिंह और नीलम सिंह छोटी बेटी।उसी तरह चौधरी परिवार में भी हैं चार सदस्य हैं, मुंसित चौधरी ,पत्नी रेखा चौधरी,मीठी चौधरी छोटी बेटी और ऋत्विक चौधरी बड़ा बेटा।
सिंह परिवार कभी किसीसे मिलते नहीं थे ।उनमें हमेसा एक घमंड थी अपनी अमीर होने के वजह से,पर उनका बडा बेटा मिस्ठान थोड़ा सा अलग था ।वो हमेशा सबके साथ मिलना चाहता था, पर एक दर उसे हमेशा रोक देता था।
मिस्ठान और ऋत्विक एक साथ पढ़ते थे ,पर कभी आपस मे बात नहीं करते और खेलते भी नही थे ।बस अपने पिताजी के वजह से मिस्ठान कभी मिलता नहीं था क्योंकी अगर ये बात पिताजी को पता चल जाता तो उसे बहुत दाट पड़ेगी।
एक सुबह ,
जब नीलम और मिस्ठान अपने सोसाइटी में खेल रहे थे ,उसी बीच मीठी और ऋत्विकक भी पहुंचे वहां ।
मीठी- क्या हम तुम्हारे साथ खेल सकते हैं?
मिस्ठान-वो खुस हो गया और कहा,
क्यों नही ,मिलके खेलने से तो और मजा आएगा।
नीलम- ये क्या कह रहे हो भया?
मिस्ठान-अरे! क्या हुआ नीलम ,इसमे गलत क्या है ।
नीलम- नहीं में नहीं खेल सकती ।ऐसे कहके नीलम निकल गयी घर की और ।
मिस्ठान- मीठी और ऋत्विक चलो हम खेलते हैं।
मीठी - नहीं दोस्त,आज नहीं फिर कभी खेलेंगे ,चलो ऋत्विक घर चलो।
ऋत्विक- अच्छा ठीक है ।
ये कहके मीठी और ऋत्विक भी उदाश होकर चले गऐ। ये बात मिस्ठान को बहुत बुरा लगा,वो भी वहां से उदास होकर चलागया।
घर पहूंचने से पहले ही नीलम सारि बाते अपने पिताजी को बता रही थी।
तभी मिस्ठान वहां पहुंचा।सभी उसको घुसे से देख रहे थे।
मिस्ठान- क्या हुआ ,सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो?
पिताजी - घुसेसे ,मिस्ठान ये सब किया है ,तुम खेलने गए थे ना।तुम मुझे क्यों नहीं समझते ,में तुम्हरा भला चाहता हुँ।
मिस्ठान- गुमसुम होकर,मुझे माफ करदो...