बरसात की रात
बरसात की शाम थी। आसमान में काले बादल घने हो चुके थे और बिजली की चमक रह-रह कर अंधेरे को चीर रही थी। गाँव के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसमें रामू अपने परिवार के साथ रहता था। झोपड़ी का हाल ऐसा था कि बरसात के पहले ही पानी की बूंदें छत से टपकने लगीं।
रामू मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालता था। उसकी पत्नी सीता और दो बच्चे, राधा और मोहन, उसी झोपड़ी में उसके साथ रहते थे। झोपड़ी का फूस का छप्पर पुराना हो चुका था, जिससे पानी बूँद-बूँद कर अंदर टपक रहा था। रामू ने अपने जीवन की अनेक बरसातें इस तरह गुजारी थीं, लेकिन इस बार का बरसात कुछ अलग थी। उसकी मजदूरी भी कम हो गई थी और पेट भरने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था।
रामू ने जब देखा कि झोपड़ी की हालत बिगड़ रही है, तो उसने एक पुराने बरतन को नीचे रख...
रामू मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालता था। उसकी पत्नी सीता और दो बच्चे, राधा और मोहन, उसी झोपड़ी में उसके साथ रहते थे। झोपड़ी का फूस का छप्पर पुराना हो चुका था, जिससे पानी बूँद-बूँद कर अंदर टपक रहा था। रामू ने अपने जीवन की अनेक बरसातें इस तरह गुजारी थीं, लेकिन इस बार का बरसात कुछ अलग थी। उसकी मजदूरी भी कम हो गई थी और पेट भरने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था।
रामू ने जब देखा कि झोपड़ी की हालत बिगड़ रही है, तो उसने एक पुराने बरतन को नीचे रख...