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त्याग
मन में एक सवाल आया अचानक से कि अपनी पसंदीदा चीजों से भला ऐसे कैसे मुंह फेर जाता है? भला कैसे एक को जिंदगी मानकर भुला दिया जाता है? मन में लाखों प्रश्न है — क्यों हुआ? कैसे हुआ? क्या कमी थी? वापस लौट कर जाने का मन भी करता है। हां वहीं पर वही...वही उसी जगह जहां मेरी इज्जत ना हुई। जहां मेरी भावनाओं की कदर ना हुई। जहां,जहां मेरी कोशिशें को नकार दिया गया। जहां मेरी 3 साल के प्यार को उसने एक पल में उजाड़ दिया। हां वही लौट के जाने का मन करता है। मैं नहीं जा सकती जाने की चाह है पर हिम्मत नहीं है।हिम्मत नहीं है फिर से वही दर्द सहने की। हिम्मत नहीं है अब फिर से अपनी ही नजरों में गिरने की। हिम्मत नहीं है अब फिर से खुद को खो देने की।

बचपन में नींबू का अचार बहुत पसंद था मुझे। पर एक दिन अचानक ऐसी तबीयत खराब हुई 3 साल तक नींबू आ अचार क्या किसी भी आचार को हाथ लगाने से मन हो गया। अब वह नींबू का अचार पसंद ही नहीं आता याद आ जाता है की कितनी दर्द में थी मैं। सही में चीज चाहे कितनी भी पसंदीदा क्यों ना हो अगर नुकसानदेह हो तो उसका त्याग कर देना चाहिए।


© @Aayushi_Yadav
#healing