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नशे की रात ढल गयी-19
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अगर आपके चारो ओर अंधेरा हो और एक दीया अपनी मस्ती में जल रहा हो कि तभी एक हवा का झोंका आये और वह अचानक बुझ जाय तो क्या होगा ? बुद्ध ने जीवन और मृत्यु को इसी प्रश्न से समझाया था .. मगर मृत्यु का यह सच एक दार्शनिक समाधान भर है जिससे मन थोड़ा सा हल्का हो जाता है ..जी हाँ ! मैं उस अंधेरे की बात कर रहा हूँ जो उसके जाने के बाद मेरी जिन्दगी में महसूस हुआ था और जिसका वजूद आज भी है। दीना के होटल तक पहुँचने की भी एक छोटी सी कहानी है । घर में एक किरायेदार था जिसका पूरा नाम अब याद नहीं,लेकिन प्रधान उसका सरनेम था। बाबूजी जी के पेंशन से घर का खर्च चलना जब मुश्किल होने लगा,तो दो कमरे और एक किचन को छोड़कर घर के बाकी सारे कमरे एक के बाद एक किराये पर लगते गये। इन्हीं में से एक कमरा उसका था ।जब खगड़िया से सीवान आया तो सबसे पहले मेरी दोस्ती प्रधान से हुई । कहने के लिए तो मेडिकल की तैयारियों में मैं भी लगा था ,लेकिन कुछ-कुछ गुनाहे-बेलज्जत की तरह। लेकिन प्रधान के लिए हरबार मेडिकल की तैयारी जीवन और मरण का सवाल बनकर खड़ी हो जाती । जैसे-जैसे परीक्षाँए नजदीक आतीं , उसका बुखार उसी अनुपात में...