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अरुण, एक अधुरे प्रेम गाथा!
कलम से स्याहि ,जैसे तेडी-मेडी धार पर रेल की तरह चल रही थी। उम्र जैसे युवा पथ पर चलने को कह रही थी। वह ना जाने कैसे पुरानी यादें ताज़ी हवाओं के साथ आज ताज़ी हो गई थी!
गरमी का व्क्त... गरमी, बिजली और गांव! गांव और बिजली का रिश्ता किस्से अनजान हैं... बिजली अक्सर आता जाता रहा करता है गांवों में, हु-ब-हु बिन बुलाए मेहमान के रूप..
बाहर की थोड़ी थंडी हवा, जैसे कागज़ और स्याहि के साथ.... मेरे मंन को भी क्यों हल चल कर रही थी आज!
में वह... जिसकी पेहचान,खुद से अंजान! चलो छोड़ो...
आज बस उन्हें जानना हैं...हवा कैसे अपने झेके से यादों को ताजी कर दी??मन की बात कागज पर उतार दी।
"पेहली बार उनसे मुलाकात हुई थी, एक मंदिर में। वह आए थे अपने परिवार के साथ। और में भी..
उस उमर में ये तो पता नहीं था, आखिर ऐसा भी कुछ होता है।
ना जाने कैसे उनके निगाहों से मेरी निगाह टकरा गई... वह नज़र टिमटिमाते मुस्कुराने लगें। एक अलग सी एहसास थी...सायद......
में सायद थी ही ऐसी... हर किसी को अपने निगाहों से खींच ही देती???? में भी मुस्कुराने लगी।❌❌❌❌❌❌❌
वाद में कैसे यह पता चला....
हमारे घर के बगल वाले घर उनका था। एक शब्द में कहो तो हमारे पड़ोसी.... उस दिन मंदिर के मुलाकात के बाद जैसे उनके घर वालें, मेंरे घर वालों से थोड़ी बहत परिचित हो गये थे।
‌एक दिन की बात, आखिर पड़ोसीयों के बीच तो ऐसा होता ही रहता है। मेरे घर में नानी के केहने पर घर में आई हुई परशाद लेकर में हमारे पड़ोसी के घर गई थी, मतलब उनके घर....
देहलीज पर थी में! और दरवाजा उन्होंने खोले..."कायनात का करीस्मा कहुं इसे, या कुछ और!!?????"
हु-ब-हु उसी तरह का मुस्कराहट था। और एक आवाज...आऔं आऔं अन्दर आऔं!
"uncle",प्रसाद, घर से दिए...
आरे आऔं तो....
"uncle", वह!अभी तक जिनके वारे में बोली ती आ रही हुं..! उम्र?सायद...३०को छुलु ??? ऐसे केह रहा है!!!!
आज उनके घरमे मेहमान थी मैं! में .... नन्हीं मेहमान!८ साल की नन्हीं लड़की।
बातों बातों में उन्होंने मुझे सब कुछ पुछ लिए। जैसे किसी अनजान से जानने के चाहत में पुछी गई सवाल....
में! बचपन में सरारत तो थी,और खुबसूरत भी! सायद उनके नज़र में??
घर से आई हुई मुझे आधें घंटा तो हो ही गई थी।उन के घर में उन लोगों से बातें कर के.... गुड़िया से खेला करके, जेसे मानों घर आना में भुल ही गई थी!
" गुडी......! गुडी! तु हे ना??आप के घर में गुडी है क्या? मा और नानी दोनों के आबाज थी। में थी घर वालों के लाड़ली! आंधा घंटा घर से दूर रहना....हाल तो बेहाल होगा ही।
वह आवाज से में तो जैसे दोडी ही चलीं आई... और मेरे पिछे पिछे वह और उनके घर वाले......❌❌❌❌❌❌❌❌
खेर! उनसे मुलाकात की दुसरे पेहलु थी। और में बिना कहे घर से आंधा धंटा दुर थी।
दिन वह दिन बीत ती गई... और मेरा उनके घर आना जाना लगा रहता रहा। और उन लोगों का भी!!!!
इस बिच में अनजान थी, की वह एक सुरेलीकार है!!! और एक आखवा भी था उनके नाम पर,कि दोपहर को drum बजा कर पड़ोसीयों को सोने नहीं दिया करते थे। पड़ोसीयों के एक दुसरे से कही सुनी जो थी।
पर मेरे लिए तो जैसे कुछ एहसास थी।सायद उनके लिए भी। कुछ तो था हमारे बिच! जो दुनिया से अनजान,बेनाम, और बेमतलब!!!!!
फिर एक दिन की बात! मेरी स्कुल में संगति की प्रतियोगिता थी। ना जाने कैसे पता चला उन्हें???? मेरे उनके घर जाते ही "वह पुछने लगे!
तुम्हारी, song competition हे ना गुडी!
वक़्त को देखो! उस वक़्त मेरी competition खतम भी हो चुकी थी और किस्मत से 2nd prize मिल भी चुकी थी।
आपको कैसे पता चला? में 2nd हुं... ना जाने कैसे पता चला उन्हें! यकिनन, क्यों बताऊं.... अब में उनके गोदी में थी। और वह मुझे उठाकर एक चक्कर लगा भी चुके थे।
उस दिन के बाद एहसास कुछ बढ़ गया था। ना सिर्फ मेरी बल्कि उनके भी!!
अब उनके घर आना जाना मेरी थोड़ी कम हो गई थी। आखिर song classes join जो कर दि थी। पर वह आया करते थे, और जब भी मिलती थी मेरी नज़र उनसे होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान रहा करती थी, जैसे मन की हर एक बात उस मुस्कान में छुपी हो....
कुछ दिन बीत गये...❌❌❌❌❌
लग भग ८/९ महिने..................
उस दिन मेरी जनम दिन थी। में एक सुन्दर सी काली नीली वाली कपड़े पहने कर हाथ मे खीरे और कांकरा पकड़ कर उनके घर चल पड़ी।
और में वहां जा कर जो देखी जैसे मानों में अपनी सपनों से मिल रही हूं। उनके हाथ में गिटार और आबाज में सुरिली सुर...
जो मुझे पसन्द थी वह थी बेहद!
संगीत क्रास मे हारमोनियम से पंक कर,मानो गिटार के संधान में थी... और गिटार मानों जैसे उनके ईसारों से नृत्य कर रही थी.... और मुझे देख कर उनके आबाज में था "wow beautiful!"
उस दिन से एहसास मानों कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। उनका छुना,खिला देना,नजदिग आना... एसाकुछ!!!!

यह एहसास सिर्फ मेरी नहीं थी। उनका भी था.... वह यह कहें तो नहीं थे।
पर उनका करीब आना,
मेरे लाख मना करने पर....
मेरे पिछे भाग भाग कर खिलाना,
मेरे साथ मिलकर गाना, गाना!
उस खामेश लब्जे से सबकुछ बया करना जैसे ही था।
आज इस बात को २०साल पुरे हो गये है। ना आज वह हमारे पड़ोसी है। ना में उनके घर जाया करती हूं। अधुरी दास्तां के तरह यह जैसे अधुरी गाथा बन कर रह गई है। अब बस कोई ख्वाहिश नहीं जेहन में....
बस वो कुतरत से यह मोहलत है! जिन्दगी मोत से मिलने पहले....उनके वह मुस्कुराहट से मुलाकात हो जाए। हु-ब-हू पुरी ना सही,यह गाथा बस अधुरे ना रहे।....


#अधुरे मुलाकात
@swaga6706