...

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शहजादी हो गयी।
"शहर की हर इक गली में ये मुनादी हो गयी,
तख़्ते-दिल पे बैठकर वो शाहज़ादी हो गयी।

मैं अकेला रह गया औ' सब की शादी हो गयी,
मेरी महबूबा पुरानी ,माँ से दादी हो गयी।

ढो रहे हैं लाश अपनी,अपने ही कंधों पे हम,
ज़िन्दगी मेरे ग़मों की एक लादी हो गयी।

जब से नेता बन गये उनकी अलग पोशाक है,
रेशमी कपड़ों के बदले अब वो खादी हो गयी।

जब पड़ी उसके रक़ीबों पर मेरी पहली नज़र,
तब से ही पैनी नज़र उसकी फ़सादी हो गयी।

यूँ तो वो बेहद हसीं है, इश्क़ से मेरे मगर,
हुस्न की उसके अभी कुछ औ' ख़रादी हो गयी।

बुझ सकी "सैयाही" नज़रों से न उसकी प्यास जब,
प्यास मेरी मैक़दे जाने की आदी हो गयी।।
Saiyaahi🌞Rashmi✒


बहर: 2122 2122 2122 212

शब्दार्थ:-
**मुनादी-डुग्गी बजाकर दी जानेवाली सूचना,

**लादी-पशु पर लादा जानेवाला बोझ

**ख़रादी- ख़रादने की क्रिया, वस्तुओं के बेडौल अंग छीलकर उन्हें सुडौल तथा चिकना बनाने की क्रिया
© ©Saiyaahii🌞✒