रामायण
रामायण श्री राम सीता लक्ष्मण जी की एक अमर कहानी है।
जो हमे धर्म, कर्म, विचारधारा ,भक्ति ,शक्ति, रिश्तों के सही मायने सिखाती है।
रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मिकी जीने की इस में 24 हजार छंद एवं 500 सर्ग जो मुख्य भागों में विभाजित है।
रामायण - बालकांड, अयोध्या कांड, आरण्य कांड , किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, लंका कांड,उत्तरकांड लवकुश कांड में विस्तारित है।
बालकांड - सरयू किनारे अवधपुरी के राजा अपनी धर्मपत्नियाँ कौशल्या,कैकई,सुमित्रा संग रहते सुंदर अवध नगरी,
लेकिन था सुना महल वो राजदरबार , चिंतित थे राजा संग महारानियाँ न था महल का उत्तराधिकारी।।
महर्षि वशिष्ठ से बात जब छेड़ी राजा दशरथ जी ने तब पुत्र कामेष्ठी यज्ञ है करवाया,
सफ़ल हुआ महायज्ञ ये तीनों महारानियाँ कौशल्या,कैकई,सुमित्रा गर्भिणी हो पाया।।
कौशल्या पुत्र राम, कैकई पुत्र भरत, सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण शत्रुघ्न ने जन्म लिया,
महाराज दशरथ जीने आनंद से पूरी अयोध्या नगरी में मिठाईयों का तो भंडार है खिलाया।।
तेजस्वी बालक ये उनकी आ जाने से तो पूरा स्वर्गलोक ही मानो आशिर्वाद की वृष्टि कर रहा,
देवी देवताओं ने किया नमन तेजवर्ण गौरवर्ण गौरवपूर्ण बालकों को , जो लिया प्रभु ने श्रुष्टि में अवतार यहा।।
विश्वामित्र ऋषि के आयी यज्ञ में बाधा तब मुनिश्री ने हर विद्या और शास्त्रों सें निपुण वीरों को मांगी सहायता है।
प्रभु राम लक्ष्मण ने युद्ध कर राक्षसों को मार दिया ऋषि मुनिश्री ने आशिर्वाद में दिव्यास्त्र प्रादान किये है।
मिथिला नरेश जनक भी निसंतान ऋषियों के कहने से हल चलाते सीत कलश में पाई कन्यारत्न है।
महल ले गए नरेश तो सीत में मिलने से रखा नाम तेजस्विता का सिता रानी सुंदरी का सुंदर नाम है।
बढ़े हुए राम और सीता उनका विवाह तो स्वयंवर रचकर हुआ था अलौकिक सोहळा सम्पन्न है।
शिव धनुष की तार खींच कर तोड़ा ताड़ से शिव धनुष जब तय हुआ सियाराम का विवाह है।।
इसप्रकार सिया-राम, भरत-मांडवी, लक्ष्मण-उर्मिला, शत्रुघ्न-श्रुतिकीर्ति का भी तय हुआ विवाह है।
साहसी चतुर आज्ञाकारी राम और सुंदर उदार पुण्यात्मा सीता हुए जन्मोजन्मो के एकदूजे के अधिकारी है।।
अयोध्याकांड- राजा दशरथ संग तीन रानियां एवं चार पुत्रों संग रहते अवधपुरी राजमहल...
जो हमे धर्म, कर्म, विचारधारा ,भक्ति ,शक्ति, रिश्तों के सही मायने सिखाती है।
रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मिकी जीने की इस में 24 हजार छंद एवं 500 सर्ग जो मुख्य भागों में विभाजित है।
रामायण - बालकांड, अयोध्या कांड, आरण्य कांड , किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, लंका कांड,उत्तरकांड लवकुश कांड में विस्तारित है।
बालकांड - सरयू किनारे अवधपुरी के राजा अपनी धर्मपत्नियाँ कौशल्या,कैकई,सुमित्रा संग रहते सुंदर अवध नगरी,
लेकिन था सुना महल वो राजदरबार , चिंतित थे राजा संग महारानियाँ न था महल का उत्तराधिकारी।।
महर्षि वशिष्ठ से बात जब छेड़ी राजा दशरथ जी ने तब पुत्र कामेष्ठी यज्ञ है करवाया,
सफ़ल हुआ महायज्ञ ये तीनों महारानियाँ कौशल्या,कैकई,सुमित्रा गर्भिणी हो पाया।।
कौशल्या पुत्र राम, कैकई पुत्र भरत, सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण शत्रुघ्न ने जन्म लिया,
महाराज दशरथ जीने आनंद से पूरी अयोध्या नगरी में मिठाईयों का तो भंडार है खिलाया।।
तेजस्वी बालक ये उनकी आ जाने से तो पूरा स्वर्गलोक ही मानो आशिर्वाद की वृष्टि कर रहा,
देवी देवताओं ने किया नमन तेजवर्ण गौरवर्ण गौरवपूर्ण बालकों को , जो लिया प्रभु ने श्रुष्टि में अवतार यहा।।
विश्वामित्र ऋषि के आयी यज्ञ में बाधा तब मुनिश्री ने हर विद्या और शास्त्रों सें निपुण वीरों को मांगी सहायता है।
प्रभु राम लक्ष्मण ने युद्ध कर राक्षसों को मार दिया ऋषि मुनिश्री ने आशिर्वाद में दिव्यास्त्र प्रादान किये है।
मिथिला नरेश जनक भी निसंतान ऋषियों के कहने से हल चलाते सीत कलश में पाई कन्यारत्न है।
महल ले गए नरेश तो सीत में मिलने से रखा नाम तेजस्विता का सिता रानी सुंदरी का सुंदर नाम है।
बढ़े हुए राम और सीता उनका विवाह तो स्वयंवर रचकर हुआ था अलौकिक सोहळा सम्पन्न है।
शिव धनुष की तार खींच कर तोड़ा ताड़ से शिव धनुष जब तय हुआ सियाराम का विवाह है।।
इसप्रकार सिया-राम, भरत-मांडवी, लक्ष्मण-उर्मिला, शत्रुघ्न-श्रुतिकीर्ति का भी तय हुआ विवाह है।
साहसी चतुर आज्ञाकारी राम और सुंदर उदार पुण्यात्मा सीता हुए जन्मोजन्मो के एकदूजे के अधिकारी है।।
अयोध्याकांड- राजा दशरथ संग तीन रानियां एवं चार पुत्रों संग रहते अवधपुरी राजमहल...