main aur ek kahaani
मैंने इस बात पर ध्यान दिया कि मैं उसी प्रक्रिया से गुज़र रहा था जिस प्रक्रिया से तब गुज़रा था जब मैं अपनी पहली किताब लिख रहा था : मैं सुबह क़रीब नौ बजे उठ जाता, नाश्ते के तत्काल बाद अपने कम्प्यूटर पर बैठने के लिए तैयार हो जाता; उसके बाद मैं अख़बार पढ़ने लग जाता, फिर आसपास टहलने निकल जाता, आसपास किसी बार में जाकर बतियाने लगता। घर वापस आता एक बार फिर से कम्प्यूटर को देखता, फिर अचानक ध्यान आता कि मुझे कुछ फ़ोन करने हैं, उसके बाद फिर कम्प्यूटर देखने लगता, तब तक दिन का भोजन तैयार हो जाता, और खाने के बैठ जाता और यह सोचने लगता कि मुझे ग्यारह बजे लिखने के लिए बैठ जाना चाहिए था, लेकिन अब मुझे नींद की ज़रूरत है, मैं दोपहर के पाँच बजे उठ जाता हूँ, उसके बाद आख़िरकार मैं कम्प्यूटर पर जाकर बैठ जाता, ईमेल देखने की कोशिश करने लगता, तब मुझे याद आता कि मैंने इंटरनेट का अपना कनेक्शन नष्ट कर दिया था; वह स्थान यहाँ से दस मिनट दूर है जहाँ मैं ऑनलाइन हो सकता था, लेकिन मैं नहीं गया, अपनी अंतरात्मा को ग्लानि भाव से मुक्त करने के लिए क्या मुझे आधे घंटे लिख...