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अधूरा सफ़र
रात के ग्यारह बज रहे थे। कॉर्पोरेट कर्मचारी विनती को अब जाकर घर लौटने का मौका मिल पाया था। भाग्यनगर (हैदराबाद का वास्तविक नाम) जैसे शहर में उसने नयी-नयी जॉइनिंग ली थी, नया शहर नया काम.. बेचारी त्रस्त हो गई थी। एक तो ऑफिस वाले खून चूस कर उससे काम करवाते फ़िर सैलरी के नाम पर वही शुरुआती झुनझुना की पहले अनुभवी बन जाओ फ़िर सैलरी या प्रमोशन की बात करेंगे। बेचारी विनती पिछले लगभग पाँच महीने से यही सब झेल रही थी। शहर से थोड़ा दूर उसने किराये का कमरा ले रखा था जिस कारण आने जाने में भी उसे बहुत तकलीफ़ होती थी पर पैसे बचाने के लिए ये करना ही पड़ता।

पढ़ाई में औसत से बेहतर विनती को जब समझ में नहीं आया की वो आगे क्या करे तो घरवालों की सलाह पर प्राण तेज के उसने जैसे-तैसे पहले इंजीनियरिंग और फिर मैनेजमेंट की पढ़ाई कर ली। वो समय उसके लिए काफ़ी तनावपूर्ण था। तब उसके चचेरे भाई अभिनव ने उसकी बहुत मदद की थी। वो भी उसकी तरह ही इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा था। फर्क़ बस इतना था कि अभिनव पढ़ाई में बहुत होशियार और तेज़ था और वो इस फील्ड में अपनी मर्ज़ी से आया था जबकि विनती पर एक तरह से इसे थोपा गया था। अभिनव पढ़ाई से लेकर गाइडेंस और मोटिवेशन.. सब मामलों में अपनी बहन की बहुत सहायता करता। खुशमिज़ाज खुशदिल अभिनव की मदद के चलते ही आज विनती अपने पैरों पर खड़ी हो पायी थी जिस के लिए वो सदा उसका आभार मानती थी।

स्टूडेंट लाइफ से ही उसमें एक आदत शुमार थी कि वो रोज़ रात को अभिनव से बात किया करती और अपने दिन भर के उपक्रम...