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फिर कब मिलोगे दोस्त !!
मित्रता दिवस (Friendship Day) के अवसर पर संदेशो को पढ़ रहा था कि एक पुराने मित्र की याद ताजा हो आई ।

वह हमसे जैसे मिला था वैसे बिछड़ भी गया पर उसका स्नेह हमें अभिभुत कर गया है और आज भी हमें उसकी याद दिलाता है। शायद निस्वार्थ स्नेह का प्रभाव बहुत गहरा होता है भुलाये नहीं भुलता !

गर्मी की छुट्टियों में गांव गया था, सुबह का उजाला गर्मीयों में जल्दी हो जाता है। बेहद आनंददायी शीतल और शुद्ध वातावरण मानों मन को मोह से लेते है। प्रात: morning walk पर जाना एक सुखद अनुभव होता है।

ऐसे ही एक दिन टहलकर वापस लौट रहा था, घर के दरवाजे तक पहुचा ही था कि देखा यह जनाब खड़े होकर दरवाजे की ओर आशापुर्ण नजरों से ताक रहे हैं। एकबार मुझे देखकर पुनः वे फिर से दरवाजे की ओर देखने लगे।

इस लेख के मुख्य शीर्षक पर उन्हीं की तस्वीर है । जी हां मैं एक कुत्ते के बात कर रहा हूं जो स्नेह का एक सबक हमें पढ़ा गया। हम उसे प्यार से " कालु" बुलाते थे।

खैर मैंने घर में जाकर धर्मपत्नी जी से कहा कि ‌यदि‌ कुछ खाने को हो तो डाल दें। रात की कुछ रोटियां पड़ी थी जो उन्होंने डाल दी । कालु खुशी से खा गया...