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आख़िर रावण ही क्यों?
आज दुर्गा पूजा का आख़िरी दिन विजय दशमी है, इसे दशहरा भी कहते है। नवमी के दिन ही हमारी मित्र मंडली ने ये बात तय कर ली थी कि हमलोग अपने घर तरफ के रावण जलने के एक प्रसिद्ध स्थान पर जायेंगे। तो तय की गई समय पर हम सब एकत्र हुए और निकल गए रावण को जलते हुए देखने के लिए। वहाँ पहुँच कर हज़ारों की भीड़ में हमलोगों ने सुरक्षित और जहाँ से आसानी से रावण को जलते हुए दखा जा सके ऐसा स्थान ढूँढा। आतिशबाजी की शुरुआत हो गई, धीरे धीरे आकाश अँधेरे में रोशनमय हो गया। और मेले में उपस्थित सारे लोग रावण को जलने का इंतजार करने लागे मानो वो अपने बुराइयों को जला रखा है या वो अपने अंदर के बुराइयों को जलाने को आतुर हो। पर जब मैनें रावण को ध्यान से देखा तो कुछ पल रुक गया न जाने क्यों? और उसे बहुत देर तक देखता रहा, मानो कुछ बातें मेरे अंदर से निकल कर कुछ कह रही हो। एक सवाल का उत्पन्न होना और उसका जवाब भी उसी समय आ जाना, शायद ये जीवन में कम ही होता है, पर इस बार मेरे साथ हुआ था। और इससे मैं ज्यादा हैरान नही था। क्योंकि सवालों की उत्पत्ति न जाने क्यों मेरे अंदर होते रहती है और इससे मैं अब परेशान नहीं होता, अपितु जीवन को समझने का एक जरिया समझ लेता हूँ।

कुछ ही देर में रावण को जला दिया गया। और जब रावण को जलते हुए देखा तो न जाने क्यों एक सवाल की उत्पत्ति हुई कि आख़िर रावण ही क्यों? ऐसा तो था नहीं की रावण ही एकलौता राक्षस था, उससे पहले सत्ययुग में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप भी थे। उन्होंने भी कम अत्याचार नही किये, यहाँ तक पूरी पृथ्वी को ही उथल पथल कर दिया। तो एक ने अपने पुत्र तक को नहीं बख़्शा। खुद विष्णु को उन्हे मारने आना पड़ा। रावण तो उसके बाद आया। शायद यही कारण हो की रावण ने असुरों में सबसे उपर की जगह ले ली। पर यदि ये कारण होता तो कंस रावण की जगह ले लेता। परंतु ऐसा नही हुआ, रावण को जलाया जाना चलता रहा। मैंने लोगों से बातचीत की कि आख़िर रावण ही क्यों? क्यों सिर्फ रावण को ही जलाया जाता है, तो कुछ लोगों ने हास्य के तौर पर कह दिया सिर्फ रावण नहीं, मेघनाध् और कुंभकरण भी तो साथ जलते है। इसका उत्तर तो आसान था, कि दोनों सिर्फ रावण की आज्ञा से ही यूद्ध कर रहे थे, यहाँ तक उन्होंने रावण को समझाया भी था, कि वो जिससे युद्ध कर रहा है वो और कोई नहीं श्री विष्णु है, नारायण है। और उसने जो किया है वो गलत भी है, अधर्म है। परंतु रावण युद्ध भूमि से पीछे नही हटना चाहता था, उसके इस जिद्द को गलत जानते हुए भी दोनों ने रावण का ही साथ दिया, अगर वो विभीषण जैसे उसका साथ न देते तो शायद रावण युद्ध न करता। अपितु ऐसा नही हुआ, उन्होंने रावण के अधर्म में पूरा साथ दिया, और रावण के हर प्रस्तिथि में उसके सहभागी बन गए। तो उनके पुतले का जलना रावण के पुतले के जलने के कारण है। यहाँ भी उन्हें रावण का सहभागी बनना तो तय है। और इस बात को कहीं न कहीं प्रकृति ने निश्चित कर रखा था, जैसा कर्म होगा वैसा ही फल, सहभागी तो हर प्रस्तिथि में सहभागी।

पर सवाल तो रावण के पुतले के जलने का था। क्यों दो युग बीत जाने के बाद भी रावण का पुतला आज भी जलाया जाता है? इसके जवाब में भी कई लोग सामने आये और मेरी इस उलझन को सुलझाने में अपनी अपनी राय देने लगे। और सबके उत्तर समान थे, सबने रावण को सबसे बड़ा अधर्मी कहा, सबका कहना यही था कि उसने सबसे ज्यादा पाप किया, परंतु क्या ये पूरी तरह से सही था। मैं जब इसपे थोड़ी और जानकारी और जोड़ रहा था तो एक बाबा की भी इसी बात पर टिप्पणी सुनी, उनका कहना अभी तक सबसे अलग था, उन्होंने बताया की रावण पंडित था, सभी शास्त्रों को जानने वाला था, महादेव का सबसे बड़ा भक्त था, और वो अपने आप में सर्व गुण संपन्न था, परंतु उसकी गलती ये थी कि उसका चरित्र खराब हो गया था। उसने पराई स्त्री को न सिर्फ गलत तरीके से देखा तथा उसकी बिना आज्ञा के उसका अपहरण भी किया। जिसके कारण उसका पाप सबसे ज्यादा था। उनके इस बात ने कई हद तक मुझे संतुष्ट किया था। की आखिर रावण ही क्यों? परंतु मैं अब भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं था।

इंद्र को आप सभी जानते होंगे, देवताओं का राजा। उसकी कहानी भी कुछ इस प्रकार से थी, उसने भी एक पतिवर्ता स्त्री की पवित्रता पर लांछन लगाया था। अहिल्या के साथ उसके इस बर्ताव को सभी जानते है, इससे ये साबित तो होता है की सिर्फ सीता हरण ही प्रमुख कारण नहीं हो सकता। मैंने अब सारे राक्षस की मरने और उसके द्वारा कर्म में ध्यान देना शुरू किया, तो एक बात मुझे समझ आई। सभी प्रमुख राक्षसों ने तीनों लोक पर कब्ज़ा किया, इंद्र देव को हराया और उसके बाद अधर्म करने लगे। उसके बाद देवताओं ने भगवान् शिव, भगवान् विष्णु, या फिर माता पार्वती का सहारा लिया। अथार्थ अधर्म का बढ़ जाना और उसे खत्म करने के लिए कोई बड़ा अवतार लेना या ख़ुद भगवान् का लड़ना दिखा। फ़िर उसमें समान सेना दिखती है, भगवान् और राक्षस दोनों की लड़ाई, जिसमें ताकत समान रूप से दिखता है, क्योंकि युद्ध तो लंबा चलता ही है। यहाँ तक की दो असुर भाई मधु और केतव् से तो भगवान् विष्णु ने वरदान तक माँगा था। परंतु वे दोनों को दुनिया सही से जानती तक नहीं, इससे ये बात तो साफ है की रावण सबसे अलग था परंतु कैसे? सवाल तो ये था, क्योंकि शक्ति में रावण से भी बलशाली और भी राक्षस थे।

अब आप लोगों को भी कहीं न कहीं ये सवाल परेशान करने लगा होगा, आख़िर रावण ही क्यों? इसका थोड़ा और गहराई में जाइये फ़िर आप रावण की और बुराइयों को गिन्नने लगेंगे, अगर मैं कहूँ कि रावण से हटकर थोड़ा राम को जानते है, तो क्या आप कहेंगे राम क्यों! पर जवाब आपको इसमे मिलेगा। राम कौन थे, राजा दशरथ के पुत्र, अयोध्या के राजा, ये बात राम को परिभाषित नहीं करती, राम नाम लेने से पहला शब्द आता है, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी, सही है न। राम हम जानते है की वो भगवान् विष्णु के अवतार थे, परंतु कहीं उन्होंने चमत्कार या दैवीक् शक्ति का प्रयोग नहीं किया, राम जो एक मनुष्य की तरह जीया अपितु मनुष्य नहीं एक ऐसे आदर्श मनुष्य की तरह जो कोई मनुष्य कभी जी ही नही सकता। वो मनुष्य जिसने अपने पिता के वचन के लिए अयोध्या जैसे राज्य छोड़ दिया, ऐसा मनुष्य जिसने उस युग में जिसमें अनेक रानियाँ रखने का रिवाज़ था, उस वक़्त एक आदर्श पति बना। माँ सीता के हरण के बाद वन वन भटका तलाश की, वह मनुष्य जिसने प्रजा को पहले और पत्नी परिवार को पीछे रखा। राम अवतार थे इसलिए भगवान् नहीं बने, राम ने कर्म किया और पुरुषों में उत्तम बने इसलिए भगवान् बने। ये राम थे। राम की गाथा कम नहीं, परंतु सवाल रावण का है। रावण ने अनेक पाप पहले किये थे, वाल्मिकी रामायण में ये बताया गया है की रावण ने रंभा के साथ यौन उत्पीड़न किया था, जिसके बाद रंभा के पति नलकुवारा ने रावण को श्राप दिया कि वह कभी भी किसी अन्य युवा महिला से संपर्क नहीं कर पाएगा जब तक कि वह उसके प्यार को साझा नहीं करती; यदि वह वासना के वशीभूत होकर किसी ऐसी स्त्री के साथ हिंसा करेगा जो उससे प्रेम नहीं करती, तो उसका सिर सात टुकड़ों में बंट जाएगा। फिर रावण को अपनी बहन शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह की हत्या भी की थी। अथार्थ रावण के अनेक पाप थे, परंतु उसके वध का प्रमुख कारण सीता हरण ही है, तो हम उसके पुराने बातों को न रखकर सिर्फ़ रामायण में दिखाई और बताई गई बातों के आधार पर जानते है। रावण ने उस इंसान की पत्नी का हरण किया वो भी छल से जिसने कभी छल नही किया, जिसके पास सेना नही थी, जो खाली पाँव जंगल में एक वनवाशी की जीवन काट रहा था। उसने उसके साथ अधर्म किया, उसने उस मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ लड़ाई की। अगर वो किसी देवता से लड़ता तो शायद उसका पुतला दहन नहीं होता, पर उसने उस व्यक्ति को चुना जिसने पाप तो दूर गलत कार्य तक नही किया, भूल उसकी ये थी। अगर आप बहुत अच्छे हो और आपके साथ की थोड़ा भी अन्याय करता है तो लोग उस इंसान को बहुत अपशब्द और बुरा कहते है। ये बातों का प्रमाण आपको फिल्मों में दिखेगा, जो नायक होता है वो अच्छा होता है, उतना भी नहीं की उसे आप राम से तुलना कर सके परंतु जब खलनायक आता है और वो उस नायक को परेशान करता है तो सिनेमा देख रहे लोग उसे गाली देने लगते है, या उस किरदार के प्रति नफ़रत करने लगते है। नायक भी ग़लत होता है कहीं न कहीं उसने भी कुछ गलत किया होता है परंतु खलनायक की बड़ी गलती के कारण हम सब नायक का साथ दे खलनायक की मृत्यु को चाहने लगते है।

इन बातों से ये साबित होता है कि जो मनुष्य दूसरे मनुष्य पर राज कर रहा है या यूँ कहे कि दूसरों को परेशान कर रहा है तब तक खलनायक नही बनता जब तक वह किसी अच्छे इंसान को परेशान करना चालू नहीं करता। जब वह नायक को परेशान करता है तो हम सब उसकी मौत का इंतजार करते है और जब वो मर जाता है तो हम सब जश्न और खुशियाँ मानते है। ये जानते हुए की सबने बस अभिनय किया था हम सब उस किरदार से जुड़ जाते है। पर रामायण तो वास्तविक्ता थी, और राम एक मर्यादा पुरुषोत्तम थे जिसने कभी पाप न किया और न होने दिया उसके खिलाफ़ रावण था, उन्हे न सिर्फ परेशान किया अपितु उनकी पत्नी का हरण किया, जो मुझे पाप नहीं महापाप लगा, बहुत बड़ा अधर्म लगा। और मेरे मन ने कहा रावण इसलिए सबसे बड़ा अधर्मी और पाप का एक रूप बना। उसी पापी रूपी रावण जो कहीं न कहीं किसी दूसरे अच्छे इंसान को परेशान कर, किसी भी रूप में, हम अपने अंदर जीवित रखे हुए है, उसी को जलाया जाता है। रावण के पुतले को जलाने का अर्थ मुझे यही लगा और जब तक आप किसी अच्छे इंसान को परेशान करते हो, उसके साथ अन्याय करते हो, तब तक आप रावण को जीवित रखते हो। इसलिए रावण का जलने का कारण उसकी बुराई तो है, परंतु उससे भी अधिक राम का सबसे अच्छा होना, आदर्श होना भी है। राम से उसकी शत्रुता उसको और पापी बनाता है। इसलिए सिर्फ़ रावण ही!

© A.K.Verma