...

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यादों का डिब्बा
आज अचानक से सफाई करते करते मुझे मेरी यादें मिल गई..."ये अब तक रखे हुए है मुझे तो लगा था किसीने फेक दिया होगा"...
उसे उठाकर मै एक धूल भरी कुर्सी पर आराम से बैठ गई जैसे कोई सीरियल आने वाला हो ओर कोई काम भी ना हो....
एक मीठी सी मुस्कुराहट से मैने उसे खोला..
ओर खोलते ही आंसू कब आ गए पता ही नही चला..
एक टूटा सा हाथी, दो चार पत्र जो मै हमेशा अपनी मां को लिखती थी जब वो नाराज हो जाती थी "मुझे माफ कर दो मां अब नहीं करूंगी" बस इतना ही रहता था...
ओर ढेर सारे हमारे प्रचलित ग्रीटिंग कार्ड्स जो है बड़े चाव से लेते ओर देते दोनो थे..
"आलू गोभी पालक हो नया साल मुबारक हो"😄...अचानक से हसी छूट पड़ी...
क्या बचपना था वो भी...मुझे तो ऐसे लग रहा था जैसे मैं सिर्फ अपना बचपन में एक जमाना भी जी रही हु..जो शायद अब नहीं रह गया है...अब समझ आ रहा था इन चीज़ों की अहमियत जितनी तब नहीं थी उतनी अब है...क्यूंकि ये वो याद ,वो पल दे देते है जो हम पैसे से नहीं खरीद सकते..मां की फोटो पकड़ मै घंटो रोई..फिर सब उस पिटारे में रखकर आ गई..मगर आज सुकून बहुत था की मेरे पास मेरा बचपना बचा हुआ है...
"की यादें भर लूं मैं सारी
मेरे मन से पिटारे में..
यही ख्वाहिश करू
मै देख मासूम से बचपन में। मेरे मालिक विदा करदे। मुझे मेरे जमाने में.