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वो आखिरी ट्रेन
महेंद्र सिंह कराची के बहुत बड़े जमींदार थे। महेंद्र सिंह जी किसी में भेदभाव नहीं करते थे। नदीम खान उनका प्रिय मित्र था। एक दिन महेंद्र सिंह अपने दरवाजे पर बैठे हुए थे, तभी नदीम खान घबराता हुआ आता है। नदीम आते ही कहता है की महेंद्र तुम कराची खाली कर दो कल से जितने भी गैर मुस्लिम हैं उन्हें मार दिया जाएगा। महेंद्र ने जाने से मना कर दिया और कहा कि मेरा जन्म यहीं हुआ है मैं कहीं नहीं जाऊंगा। नदीम ने रोते हुए कहा की दोस्त मेरी बात मानो नहीं तो तुम्हारे सामने तुम्हारे बेटे की हत्या कर दी जाएगी और भाभी की इज्जत तुम्हारे सामने लूट ली जाएगी। मेरी बात मानो आज रात 11:00 बजे आखरी ट्रेन है उससे निकल जाओ। महेंद्र बहुत उदास था। उसे अपने दादा परदादा की विरासत को छोड़कर जाने का मन नहीं था। नदीम ने कहा महिंद्र तुम चिंता मत करो ये तुम्हारी ही विरासत नहीं है मेरी भी है बचपन तो मेरा भी यही गुजरा है मैं तुमसे वादा करता हूं की मैं अपनी अंतिम सांस तक इसकी रक्षा करूंगा। जल्दी करो महेंद्र 10:00 बज चुके हैं हमारे पास बस एक घंटा है। अगर वो आखरी ट्रेन छूट गई तो कल तक कोई ट्रेन नहीं है जाने की तैयारी होने लगी, जैसे ही सब घर से बाहर निकले अचानक महेंद्र को हार्ट अटैक आ गया। महिंद्र की पत्नी और बच्चे दोनों उनके पास बैठ गए। महेंद्र ने नदीम से कहा दोस्त मेरा जन्म नहीं हुआ है और मृत्यु भी यही होगी। मैं अपने पूर्वजों के सामने लज्जित नहीं होना चाहता हूं। मेरे मित्र तुम मुझसे वादा करो की मुन्ना और अपनी भाभी को तुम वो आखिरी ट्रेन में सही सलामत पहुंचा दोगे। नदीम ने नम आंखों से महेंद्र से वादा किया कि वो इन दोनों को आखिरी ट्रेन तक सही सलामत पहुंचा देगा। महेंद्र ने अपनी पत्नी से कहा कि, मेरा सफर यहीं खत्म हो रहा है तुम अपने मां के यहां चले जाना, मेरी कुछ संपत्ति वहां पर भी है जिससे तुम्हें आगे कोई परेशानी नहीं होगी। इतना कहते हैं महेंद्र सदा के लिए सो गया। सभी फूट-फूट कर रोने लगे। नदीम ने रोते हुए कहा कि भाभी जल्दी चलिए आप लोगों के हिंदुस्तान पहुंचने पर ही महेंद्र की आत्मा को शांति मिलेगी। नदीम ने अपना वादा निभाते हुए उन दोनों को उस आखिरी ट्रेन में बैठा दिया। नदीम ने महेंद्र की पत्नी से वादा भी किया की ‌वो हर साल सब से मिलने हिंदुस्तान जरूर आएगा।
इतने में चल पड़ी वो आखरी ट्रेन अपने गंतव्य की ओर।
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