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तेरे लिए
जीवन की हर व्यस्तता के बीच
कभी जो मुझे गलती से कोई पल
शेष मिल जाया करेगा स्वयं के लिए
तो ये निश्चित है कि आजीवन अपने
उस एक पल में मैं यही सोचूंगी कि
कैसे तुम मुझे त्याग पाए

यह सवाल कहीं सूक्ष्म में
हमेशा के लिए अटक गया है
मैं वहीं रुकी हूं
शायद हमेशा रुकी रहूं
तुम्हारे चले जाने के बाद के
खालीपन से ज्यादा
इस बात का दुःख रहेगा कि
तुमने हमारे लिए हमेशा से
अलग होना चुन रखा था
केवल मुझे बताया बाद में

हमारे अलग भविष्य की बात
सूचित करते समय तुम सहज थे
तुम्हें बिछोह स्वीकार्य था
मैं क्या बोलती तुमसे
कैसे बोलती कि हम साथ मिलकर
मनाएंगे सबको, क्योंकि उन सबसे पहले
तो मुझे तुम्हें मनाना था
दुनिया को कन्विंस करना आसान होता
हार तो मैं तब गई जब एहसास हुआ कि
दुनिया को नहीं, तुम्हें कन्विंस करना है
समाज की असहमति स्वीकार्य थी
बिखरी उस रोज
जब तुम्हारी आवाज में असहमति सुनाई दी
जब तुम भविष्य को लेकर हिचकिचाने लगे

क्या प्रेम में होना और
साथ भविष्य की कल्पना त्याग देना
वाकई संभव होता है?
क्या तुम्हारे लिए आसान था
मुझे उस सपने में अकेला छोड़ देना
जो हमने साथ देखा था?

दुःख इस बात का भी कि
रिश्ता जैसा जो भी था हमारे बीच
वो तोड़ते हुए भी तुम कुछ नहीं बोले
हमेशा की तरह मैं खड़ी रही
अपने सवाल लिए
इंतजार में कि तुम शायद
आखरी बार मुझे कोई जवाब दो
कैसे मेरे प्रेम से निकलना
तुम्हारे लिए इतना आसान था
और क्यों मैं तुम्हारी
हर वादा खिलाफी के बावजूद
आज भी तुम्हारे प्रेम में हूं

लोग पूछते हैं और मैं निरुत्तर होती हूं
क्योंकि मैं तो आज भी तुम्हें तलाशती हूं
कई सारे सवाल और शिकायतें हैं तुमसे
पर सच मानो इल्जाम एक भी नहीं
ईश्वर करे तुम्हें प्रेम नसीब हो
और उस प्रेम को पूर्णता
और मुझे? ... बस एक आखरी चिट्ठी
जिसमें दिया हो तुमने जवाब
क्या तुमने कभी मुझसे प्यार किया भी था

डायरी में तुम्हारे नाम लिखी हैं
सारी दुआएं, इबादतें और खुशियां
तुम्हें मिले दोबारा कोई
जिसे तुम्हारी सुनहरी आंखों से मोहब्बत हो
वो देखे उनमें खनकती धूप
और तुम, तुम देख पाओ उसमें भविष्य
और ढेर सारा इश्क
जो तुम मुझमें नहीं देख पाए ।
© शिवप्रसाद