अन्तर्द्वन्द
रात को १ बज रहे हैं, अभी.. जबकि पूरा शहर नींद की आगोश में सुकून के लम्हों को जी रहा था, मेरी आंखें नींद को ढूंढ़ रही थीं, पर उसे तो बीते दिनों की यादों से उपजे विचारों के द्वंद ने कैद कर लिया हो जैसे। मेरी आंखें भी नींद के आगोश में सुकून के कुछ पल गुजरना चाहती थीं...हां "सुकून"..वो सुकून ही अब कहीं था नहीं जीवन में, पर विचारों के द्वंद हैं कि वो पल भी छिने लेती हैं क्योंकि वो नींद को पास आने ही नहीं देती, जैसे अठखेलियां कर रही हों मेरे साथ!
वो भी तो करती थी अठखेलियां मेरे साथ, ऐसे ही... मैं जब भी उसके करीब जाता उसे कोई ना कोई काम याद आ जाता, छोटे मोटे गैरजरूरी काम भी... मैं मन मारकर रह जाता था... वो मुस्कुरा देती थी अपनी इस छोटी सी जीत पर, और मेरे लिए तो जैसे उसकी मुस्कुराहट ही मेरी जीत थी... उफ्फ.. उसकी वो दिलकश मुस्कान...मेरा सुकून, मेरे ज़िन्दगी की ऊर्जा सब इस एक दिलकश मुस्कान में ही तो अंतर्निहित थी.. हां..भला और क्या चाहिए था मुझे अब..उसके चेहरे की इस एक दिलकश मुस्कान के बाद ?
पहली ही मुलाकात में मुझ जैसे इंसान को उसकी इसी दिलकश मुस्कान ने तो जीत लिया था, जिसे प्यार.. मोहब्बत..वो भी पहली नज़र की..किताबी और फिल्मी लगती थीं..पर उसकी दिलकश...
वो भी तो करती थी अठखेलियां मेरे साथ, ऐसे ही... मैं जब भी उसके करीब जाता उसे कोई ना कोई काम याद आ जाता, छोटे मोटे गैरजरूरी काम भी... मैं मन मारकर रह जाता था... वो मुस्कुरा देती थी अपनी इस छोटी सी जीत पर, और मेरे लिए तो जैसे उसकी मुस्कुराहट ही मेरी जीत थी... उफ्फ.. उसकी वो दिलकश मुस्कान...मेरा सुकून, मेरे ज़िन्दगी की ऊर्जा सब इस एक दिलकश मुस्कान में ही तो अंतर्निहित थी.. हां..भला और क्या चाहिए था मुझे अब..उसके चेहरे की इस एक दिलकश मुस्कान के बाद ?
पहली ही मुलाकात में मुझ जैसे इंसान को उसकी इसी दिलकश मुस्कान ने तो जीत लिया था, जिसे प्यार.. मोहब्बत..वो भी पहली नज़र की..किताबी और फिल्मी लगती थीं..पर उसकी दिलकश...