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ख़्वाहिशें
ख़्वाहिशें

ख़्वाहिशें हर इंसान की होती है ।कुछ होती है पूरी तो, कुछ रह जाती है अधूरी। यह कहानी ऐसी ही ख़्वाहिशों पर आधारित है ।उम्मीद है सभी को पसंद आए।

* ख़्वाहिशें*

"सुनो बेटा . !अब तुम्हारी शादी होने वाली है। कुछ दिनों में तुम हम सभी को और इस घर को छोड़कर ससुराल चली जाओगी ।लेकिन मेरी बात समझो पहले ।जो भी खाना पीना या पहनना हो ,वह यही अपने घर में ही कर लो। घूमना फिरना भी कर सकती हो। जो भी तुम्हारी ख़्वाहिश है ,वो सब एक महीने में पूरी कर लेना ।ससुराल में अपनी ख़्वाहिशों का पिटारा मत ले जाना। जाने वह लोग क्या समझेंगे"।
कह कर राधिका जी ने अपनी बेटी नताशा के माथे प्यार से हाथ फेरा।
अवाक सी नताशा ज़वाब में सिर्फ "जी मम्मा" ही कर पाई।

नताशा जो की 22 वर्ष की सुलझी हुई और रिवाजों में उलझी हुई लड़की है। वैसे तो सभी की लाडली है लेकिन, कई ख़्वाहिशें उसकी मांँ चाह कर भी पूरी न कर पाई ।अभी चंद महीनों पहले ही तो बात है जब ,उसे सहेलियों के साथ कॉलेज के ट्रिप में गुजरात ले जा रहे थे। कितने पैर पटके थे नताशा ने, जाने के लिए लेकिन पापा ने हांँ नहीं की ।

और उसकी तसल्ली के लिए मांँ ने कहा था कि शादी होने वाली है, अपने पति के साथ ही जाना ।

यह इकलौती घटना नहीं थी जो, उसके साथ हुई अक्सर उसे पहनावे पर भी रोक टोक जाता था। कभी जींस तो, कभी कुर्ते की आस्तीन। शॉर्ट्स तो उसके पास थे ही नहीं। कभी-कभी मन होता तो दादा-दादी से कहती, सिर्फ घर में ही तो पहनती हूंँ मैं ।एक बार लाने दो ना ज्यादा नहीं।तब दादा दादी भी यह कहते ,बेटा सारी ख़्वाहिशें तुम्हारा पति ही पूरी कर सकता है, यहांँ तो पिता के अनुसार ही रहना पड़ेगा ।

आजादी तो थी उसे जो चाहे वह खा सकती है लेकिन, घर पर ही पानी पुरी और आइस्क्रीम भी घर पर ही आती थी और चाईनीज़ के तो वह सभी नाम भी नहीं जानती थी । सिनेमाघर, मॉल और चौपाटी यह सब उसने नहीं देखे ।बहुत सारी सहेलियां छूट गई क्योंकि, वह नहीं चाहती थी कि सिर्फ़ वही हर बार नताशा के घर आए कभी तो नताशा भी सहेलियों के घर जाए।

ऊब जाती थी कभी-कभी नताशा घर की चार दिवारीयों से ।कभी दम घुटता भी तो मन को समझा लेती ,कितने ही दिन है अब तो ससुराल में जाकर ही सारी ख्वाहिशे पूरी करूंगी।

जो मर्जी, जैसी मर्जी खाऊंगी, पहनूंगी और घूमूंगी ।

लेकिन आज तो उसका यह सपना भी चकनाचूर हो गया जब मां ने उसे सख़्त हिदायत दे दी ।

अपने मंगेतर का उसने सिर्फ़ फोटो ही देखा था पिताजी नहीं चाहते थे की शादी से पहले बच्चे बात करें। जो भी बातें थी दोनों परिवार वालों ने आपस में ही समझ ली लड़का अच्छा था ,सरकारी नौकरी थी, परिवार भी लगभग एक जैसे थे तो ,माता-पिता ने सगाई कर फटाफट शादी भी तय कर दी ।

नताशा को उस रात नींद तक नहीं आई। सारी रात यही सोचती रही कि ,पता नहीं अब क्या होगा ।

लगता है एक पिंजरे से दूसरा पिंजरा ही मेरा नसीब है ।तभी सुबह के 5:00 बजे उसका फोन बज कोई नया नंबर था ।उसने फोन उठाया उधर से आवाज आई,

"हेलो, नताशा...! सोई नहीं थी क्या..? मैं अर्पित बोल रहा हूं "..!

हैरान और आवाक नताशा उत्सुकता और संकोच से सिर्फ इतना ही कह पाई ,"आपको मेरा नंबर कहां से मिला.".!!

अर्पित ने कहा ,"तुम्हारे किसी रिश्तेदार से नंबर लिए थे मैंने ।लेकिन पता नहीं तुम क्या सोचोगी वह सोच कर फोन नहीं लगाया ।आज मैं रात भर नहीं सोया तो , मैंने तुम्हें फोन किया ।कल रात मेरी मांँ मुझे कह रही थी कि तुम्हें घूमना, फिरना और छोटे कपड़े पहनना पसंद नहीं है ।लेकिन मुझे पसंद है ।मैंने शादी के बाद गोवा की ट्रिप बनाई है ।हम दोनों के हनीमून की ,सोचा था सरप्राइज दूंगा लेकिन ,मेरी मां ने कहा तो खुद को रोक नहीं पाया ।
..... तुम सुन रही हो न नताशा.."।

हांँ मैं सुन रही हूं...!!नताशा ने कहा।

"मुझे गलत मत समझना, मांँ ने वही बात कही जो तुम्हारे परिवार ने बताई। मैं तुम्हें पसंद करता हूंँ लेकिन, तुम क्या चाहती हो ..? क्या तुम मेरे साथ मेरे और अपने सपने बांट सकती हो ..?अभी भी वक्त ही तुम किसी और से भी शादी" ....!!

"चुप रहो .! मत कहो ऐसा ,मैं तुम्हें अपना मान चुकी हूंँ ।अब तुम दूल्हा बनकर ही आना और मुझे अपने साथ ले जाना। मैं तुम्हारी ख़्वाहिशें से मन से पूरी करूंगी ।"

उस दिन नताशा और अर्पित बहुत खुश हुए। सिर्फ 10 मिनट की बात में उनके सारे संकोच मिटा दिए। नताशा को खुश देखकर दादा-दादी कहने लगे कि ,"आज तो हमारी लाडली बड़ी खुश है..! क्या हुआ?

और दूसरे कमरे में से पिताजी मुस्कुरा रहे थे क्योंकि, जिस रिश्तेदार की अर्पित बात कर रहा था ,वह रिश्तेदार उसके पिता ही थे। लेकिन अर्पित ने नताशा को नहीं बताया था।

जरूरी नहीं की हर लड़की की ख्वाहिशें ससुराल में पूरी हो। इसलिए अपने बच्चों की वह ख़्वाहिश है जो पूरा कर सकते हो, वह अपने घर पर ही पूरी करें। हर लड़की की किस्मत नताशा जैसी नहीं होती।🙏

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