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सच्ची घटना
*सच्ची घटना*
बात बहुत पुरानी है मगर मेरी ज़िन्दगी की असली कहानी है।1986 के दिसम्बर माह के एक रविवार की बात है। मैं और मेरे हसबैंड गाजियाबाद से दिल्ली इर्विन वर्तमान LNJP अस्पताल किसी रिश्तेदार को देखने जा रहे थे जब बस में हमने टिकट लिया तो कुछ पैसे कन्डेक्टर को वापस करने थे। अपना स्टॉप आने से थोड़ा पहले मेरे हसबैंड ने सोचा मैं जाकर बाकी पैसे ले लेता हूं क्योंकि बस कन्डेक्टर पीछे वाली सीट पर बैठा हुआ था। मेरे हसबैंड मुझे बिना बताए बस की आगे तरफ से उतर कर पीछे से बस में चढ़ गये मैंने सोचा शायद हमें यही उतरना है मै भी उनके पीछे उतर गई परन्तु मेरे हसबैंड को इस बात का पता नहीं था कि मैं भी उनके पीछे आ रही हूं मैं जैसे ही बस से उतरी बस चली गई। मैं कर भी क्या सकती थी उस समय मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे।मेरे पास पैसे भी नहीं थे।

कंडकटर से पैसे लेकर मेरे हसबैंड जब सीट पर पहुंचे मुझे बस में ना देखते हुए बस में बैठे मुसाफिरों से पूछा वह जो लेडी यहां पर बैठी थी वह कहां गईं उन लोगों ने बताया जब आप बस से उतरे थे वह तो आपके पीछे ही बस से नीचे उतर गई थी।इस पर मेरे हसबैंड बहुत परेशान हो गए वह बीच में ही बस से उतर कर मुझे ढूंढने निकल पड़े।
वह सबसे पहले उसी जगह पर आये जहां बस से मैं उतरी थी पर उन्हें नहीं मिल पाई।
शाम का समय था एक नए शहर में अकेले पहले तो मै बहुत घबरा गई फिर मैंने हिम्मत से काम लिया। काफी देर इंतजार करने के बाद वहां खड़े एक दम्पत्ति को मैंने अपनी आप बीती सुनाई।उन भले लोगों ने मुझे 50 पैसे दिए और बताया इस नम्बर की बस आएगी आप उससे चली जाना सीधे आपको अस्पताल के गेट पर उतार देगी। मैं बस में घबराती हुई खिड़की से देखती रही कब अस्पताल आये और मैं बस से नीचे उतरू।इतने में अस्पताल आ ही गया अचानक ही मुझे मेरे भाई गेट के पास चाय पीते हुए दिखाई दिए मेरी आंखों में उस समय आंसू थे।
मैंने उन्हें अपनी आप बीती सुनाई वे मुझे अंदर छोड़ कर पुनः गेट पर आ गए।
इतने में मेरे हसबैंड मायूस होकर मुझे ढूंढते ढूंढते अस्पताल आ गए मेरे भाई ने उन्हें देखकर बोला घबराओ नही मिथलेश आ गई है
यह कहानी मेरी ज़िन्दगी की एक सच्चा किस्सा बन गई।
आज कितना सब कुछ बदल गया है आज भी जब वह किस्सा हम दोनों किसी को बताते हैं मेरी आंखों में आसूं आ जाते हैं।
आज सोचा क्यों ना इस घटना को साझा करके अमर कर दूं आने वाली पीढ़ियों भी इस सच्ची कहानी को भी पढ़ कर यह सीख मिल सके कि जीवन में विपरीत परिस्थिति में भी घबराना नहीं चाहिए। बल्कि धैर्य पूर्वक समझदारी से काम लें तो रास्ता अवश्य मिलता है।