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जा चुके वो दिन
जा चुके वो दिन जिसमे हम जीया करते थे . आज भी वो दिन याद है जब लोग अपने होने का एहसास दिलाया करते थे वो पल भी कुछ और हुआ करते थे , अरे ! राहगीरों मेरे मित्रों मेरी सुन तेरे न हो सकेंगे वो लोग जो तुझे तनहा छोड़कर अकेले जीने के लिए कह दिया अच्छा हुआ उन्होंने जीना सीखा दिया ।
मैंने अकेले चलना भी सीखा लिया है और तू भी सीख ले नहीं तो ये लोग तुझे खा जाएंगे तेरे ईमानदारी के चादर की नुमाइश करेंगे । तेरे न वो कल थे ना वो तेरे आज है तू ही आज है ,तुही कल होगा, तो ये अच्छाई की चादर हटा और चल चला चल अपनी राह पर जिधर ना तेरे एहसासों का गला दबेगा नाही तेरे सम्मान की बेज़्ज़त्ति होगी तू ही रचियता है इस जीवन काल का।
जिंदगी ने तो कोहराम मचा दिया है हर पल वो हर शख्स की याद दिलाती है जिनसे जिंदगी ने वाकिफ कराया । हमने तो बस दूसरों के विचारों को सही करने का जिम्मा ले लिया है । इस अंधी जिंदगी में हम कहा है हमने तो अपने लिये कुछ सोचा ही नही कुछ किया ही नही सिर्फ दूसरों के लिए पूरी जिंदगी लगा दी ,पर आज भी उन्हें ज़रा भी एहसास नही मेरे किये हुए कर्मों का , किये हुए कर्तव्यों का जो मैंने पूरी तरह से पालन किया था।

जिंदगी खत्म सी हो गयी सिर्फ दूसरों के भले के लिए सोचते सोचते हम कब सोचेंगे अपने भले के लिए , मित्रों कही ऐसा न हो जाये हम परिपूर्ण तरीके से काम करने के चक्कर मे हम खुद को न भूल जाये , अब तो ऐसा लगने लगा है जिंदगी मुझपर ही भारी बोझ सा लगने लगी है , स्वास थम सी गयी है घुटन सी महसूस होने से लगी है, क्यों वो दिन फिर से नही आ जाते जिसमे मुझे जीने की चाह दिखती थी , जीवन मे एक नई रोशनी दिखती थी, वो बढियां पकवान जिसे मैं बड़े चाव से खाया करती थी ,मुझे तो अब जिंदगी डूबती हुई सी नज़र आने सी लगी है । इसलिए दोस्तों कभी भी किसी भी इस्थिति में किसी को अपने ऊपर हावी मत होने देना ।
ख्वाहिशों का महल अब टूटता हुआ दिख रहा है क्यों ना हम अपना राह खुद ही चुन लें जिससे कि हम अपना राह खुद ही तैय करले , जिंदगी से अब क्या चाहिए ,चाहिए तो बस एक साहस कुछ बदलाव लाने के लिए परस्पर हमे इसपर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ।
दुबारा उस वक़्त को सुधारना होगा जिसमें मैंने अपने व्यक्तिविशेष को खोखला बना दिया था, जीन जीन लोगो ने एहसास कराया पराये होने का ,अब तो बस एक सोच चाहिए ऐसे बदलाव के लिए, एक विचार ही काफी है । पर इस कलयुग में साहस की भी परीक्षा होती है जिसे मुझे पुर्णतः पूरा करना होगा , वो भी साथ ना देने में मजबूर है साहस भी अब डर सा गया है , कही ऐसे लोग डस तो नही लेंगे , चिंतन करने वाली बात है डूबती कश्ती का क्या करूँ जहा सहारा भी नसीब ना हो ,वहां साहिल ही क्यों भेजू जहा पराया सा लगे ,बीतें हुए कल का आज सामना कर रही, सपनो से ज्यादा सहनशील हो गयी , मुझे अब कोई ठोकर भी मरेगा तो संभल जाउंगी ।

तो मित्रो मैं ये बोलना चाह रही ,बहती हुई कश्ती का कोई किनारा नही होता ,पराया हुआ इंसान कभी अपना नही होता ,

इस जीवन काल मे सिर्फ उन्हीं को आप अपने से परिचय करवाईये जिसे की आप उनके व्यक्ति विशेष से परिपूर्ण तरीके से परिचित हो ।

अंततः मैं ये बोलना चाहूंगी , तो मित्रो इस कोरोना काल में आप अपने को सुरक्षीत रखिये और दूसरों को भी

प्रणाम 🙏🙏आपकी छोटी लेखिका
शशि त्रिपाठी