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घर वाले नही माने
हम सभी के जीवन में ये दौर जरूर आता है,जब हमें किसी न किसी विषय पर यह बात "घर वाले नही माने" कह कर खुद के मन,सपने,अरमान मारकर जिंदगी को जीना होता हैं।बेशक मेरे द्वारा लिखा गया लेख कहानी ही है किंतु इससे कोई अछूता नहीं।
आशा करती हूं आप सभी को पसंद आए..🙏!!

*घर वाले नही माने*
गोपाल दास अपने जमाने के बहुत जिम्मेदार और नर्मदिल इंसान थे।सभी की बात बड़े प्रेम से सुनते थे चाहे वो उनसे उम्र में छोटे या फिर बड़े हो।फिर ऐसा क्या हुआ फिर ऐसा क्या हुआ जो वो कमरे में अकेले पड़े पड़े रो रहे और कह रहे है कि ये रात मेरी आखिरी रात हो..!
रोते रोते ही वे सोचने लगे अपने बीते हुए दिन या उम्र ही कह सकते है। जब गोपाल समझने लगे तब माँ से मेले में कार खरीदने की ज़िद की लेकिन, "पिताजी नहीं मानेंगे" ये सब फिजूल खर्च है कहते हुए माँं ने माना कर दिया ।फिर गोपाल किसी भी वस्तु या कबाड़ को कार समझ कर मन बहला लिया करता था।
ये कोई पहली या आखिरी बार नहीं था ये तो बस शुरुआत थी, धीरे धीरे उसे कपड़े,यार,दोस्त,खाने पीने आदि में भी रोका टोका गया।गोपाल कभी मां तो कभी पिता,कभी रिश्तेदार तो कभी पड़ोसी तक के मन की करता रहा। कक्षा 12 के बाद उसे बाहर पढ़ने का मन था तब पिताजी ने कहा_"मैं तो रह लूंगा मगर तुम्हारी "मां नहीं मानेगी" वो तुम्हारे बिना रह नहीं सकती,तुम आगे की पढ़ाई बंद कर दो।
अपने स्वप्न सुनहरे तोड़ कर भी गोपाल मुस्कुरा कर जीता रहा,गांव में ही गहने की दुकान पर काम सीखने लगा।सेठ के एक ही बेटी थी और वो चाहता था कि उसकी शादी गोपाल से करे,गोपाल भी मन ही मन यही चाहता था।उसके मां पिता भी इस बात से सहमत थे लेकिन अफसोस समाज के ठेकेडा "पंच पटेल नही माने "..!
गोपाल का अंतर्मन टूट गया वो चाहता था कि चिल्ला कर कह दे सभी को _"नही मानता मैं ये सामाजिक धपोसले मुझे अपने प्यार को नही खोना"..!लेकिन उस समय सामाजिक दबाव के होते उसे अपने दिल पर पत्थर रख कर अपने ही समाज में विवाह करना पड़ा।बच्चे भी हुए लेकिन उसे वो पहला सा प्यार नहीं हुआ,ऐसा नही था कि गोपाल पति धर्म नही निभा रहा,वो बड़ी खुशी से सारी जवाबदारी बखूबी निभा रहा था।उसकी पत्नी की बात सुने तो उसके जैसा पति सारी दुनिया में नही बड़े पुण्य प्रताप से पाया मेरे तो सातों जन्म सफल हो गए।
धीरे धीरे बच्चे बड़े हुए ,एक दिन पत्नी ने कहा _मेरे बच्चे शहर पढ़ने जायेंगे।गोपाल के लाख मना करने पर भी "पत्नी नही मानी"..!
बच्चे शहर में पढ़े और अपनी पसंद से प्रेम विवाह किया,गोपाल ने बहुत समझाया लेकिन "बच्चे नही माने". !
परिणाम स्वरूप बेटी ने प्रेम में पड़ कर शराबी से शादी कर ली,जो आए दिन उसे पिटता रहता था।बेटी के दुख से दुखी गोपाल की पत्नी हार्ट अटैक से संसार को छोड़कर चली गई।पत्नी की मृत्यु पर गोपाल दहाड़े मार कर फूट फूट कर रोया "चाहो तो मुझे भी मौत दे दो मगर मेरी पत्नी को जिंदा कर दो"..!
मगर अफ़सोस उसकी ह्रदय विदारक पुकार पर भी "भगवान नहीं माने"..!
धीरे धीरे गोपाल टूटने लगा,दुकान पर भी नहीं जाता,जिसके कारण उसका अयोग्य बेटा दुकान नहीं चला पाया और घाटे के चलते दुकान बंद हो गई।
एक दिन बहु ने बेटे को कहा_"हमारी दशा तो ठीक नहीं और तुम्हारे पिता का खर्च, उस पर भी शराबी जमाई को भी माथे बिठा रखा है अब मुझसे सहन नहीं होता या तो अपने पिता को किसी वृद्धा आश्रम छोड़ आओ या फिर मैं ही चली जाती हूं।"
ये शब्द बहु ने बेटे को जरूर कहे थे लेकिन आवाज इतनी ऊंची थी कि सारे मोहल्ले वालों ने सुनी।
आखिर हार कर बेटा गोपाल के पास आया और बोला _"आपने पूरी जिंदगी खुशी खुशी अपने हिसाब से जी ली।मैं नहीं चाहता कि आप मुझे छोड़ कर जाए पिताजी लेकिन "आपकी बहू नहीं मान रही "..! बड़े शहर के वृद्धा आश्रम में आपका नाम लिखवा दिया है,सुबह तड़के ही जाना होगा हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"
बेटे के मोटे बोल सुन कर गोपाल अवाक रह गया।जिंदगी भर "नहीं माने"शब्द पर अपनी सारी इच्छाएं दफन करता रहा ।
और आज बेटा बोल रहा कि वो अपने हिसाब से जिया।
न खिलौना, न पढ़ाई, न प्यार, न व्यापार कुछ भी तो नहीं था उसकी पसंद का।
लेकिन फिर भी सभी का मन रख कर वह जिया,सारी जिंदगी जिया।अब लगता हैं कि मौत भी बहु बेटे की पसंद से परदेश में अनाथालय में ही आएगी।रोता बिलखता हुआ गोपाल अपनी ही मृत्यु की कामना करता रहा रात भर मगर,अफसोस उसकी ये अंतिम इच्छा पर भी "यमराज नही माने" ..! सुबह गोपाल बेमन से निकल पड़ा वृद्धा आश्रम की यात्रा पर....!!!!!

कितना दर्द होता रहा होगा गोपाल जैसे कई इंसानों को जो हर रोज मर मर कर जीते रहे. ।
अगर आपकी जिंदगी में भी ऐसा कोई दौर आया जब किसी के न मानने से आपने खुद के मन को मारा .., प्लीज कॉमेंट में जरूर बताएं..! 🙏
लेखक_#shobhavyas
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