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चाहत(लघुकथा)
"अरे यार!तुम भी ना!बात_बात पर रूठ जाती हो।अब मान भी जाओ ना!"राज अपनी प्रेमिका रूपाली को मनाते हुए कहा।मगर, रूपाली भी राज की एक ना सुनी।वह बिना देरी किए ही वापस अपने घर जाने लगी।तभी,राज को एक उपाय सूझा।वह चिल्लाते हुए बोला"ठीक है, तुम्हारा मन मुझसे भर गया है।"
यह सुनकर रूपाली रुकी। फिर दौड़कर आई,और राज से चिल्लाकर बोली"यह कौन सी आदत है। मुझे परेशान भी करते हो। प्यार भी करते हो।"
इतना कहकर वह रोते हुए राज को गले से लगा लेती है। यह देखकर राज मुस्कुराने लगा।फिर रूपाली की तरफ देखकर बोला"तुमसे प्यार करता हूं।तभी तो थोड़ा सा शरारत भी करता हूं। यकीं मानो, तुमसे मैं दिल से चाहत रखता हूं।"राज मल्होत्रा की बातें सुनकर रूपाली अपनी आंसू को पोछती हुई बोली"तब, प्रॉमिस करो।आज के बाद मुझे कभी भी परेशान नहीं करोगे।"
राज यह सुनकर मुस्कुराया,और प्रेम से रूपाली को गले से लगा लिया। फिर दोनों तरफ चाहत की लहरें उठने लगी।
: कुमार किशन कीर्ति।
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© kumar kishan kiti