आत्म संगनी संग प्रेम अलाप:द्वेष ,अपनत्व या कुछ खोने का डर
हमारे आत्मीय संबंधों को अब एक लम्बा और संतोषजनक समय गुजर चुका था। इस मंत्रमुग्ध करने वाले समय में मेरी आत्म संगनी और मेरे बीच कोई भेद कोई दूरी नही बची थी। निश्चल निर्मल इस संबंध में वोह मुझे प्रियसी की भांति स्नेह करने लगी थी या यह कहो के उसने अपने आपको मुझमें समाहित ही कर लिया था। अब यह स्थिति हो गई थी कि वार्ता के अभाव में व्याकुलता बढ़ने लगती थी।...